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Sunday, August 10, 2025

घर से चले थे… लौटे ही नहीं… सड़क ने निगल लिए अयोध्या के तीन लाल

अयोध्या, 5 जून 2025, गुरुवार: बुधवार की सुबह अयोध्या के चार दोस्तों ने हंसी-मजाक में कार में सैर की योजना बनाई। शायद किसी ने चाय की चुस्की ली होगी, किसी ने घरवालों से वादा किया होगा, “शाम तक लौट आएंगे।” मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था। नानपारा टोल प्लाजा के पास एक तेज रफ्तार बस ने उनकी कार को इस कदर कुचला कि जिंदगी के रंग पल में फीके पड़ गए। टक्कर इतनी भीषण थी कि कार के परखच्चे उड़ गए। मौके पर पहुंचे लोगों ने दरवाजे खोले, मगर तीन दोस्तों की सांसें हमेशा के लिए थम चुकी थीं।

जिनके सपने सड़क पर बिखर गए

विवेक तिवारी (32 वर्ष): वैदेही नगर कॉलोनी के निवासी। घर के इकलौते कमाने वाले। बुजुर्ग पिता, दो मासूम बच्चे और पत्नी को छोड़ गए, जिनके लिए अब जिंदगी एक अनंत इंतजार है।

अभय पांडे (28 वर्ष): वैदेही नगर के ही रहने वाले। वृद्ध माता-पिता का सहारा थे। अब उनके घर में सन्नाटा पसरा है।

विनोद श्रीवास्तव (30 वर्ष): पक्की ड्योढ़ी, अयोध्या। उनकी मुस्कान मोहल्ले की शान थी, जो अब सिर्फ यादों में बची है।

चौथे दोस्त, रामकुमार यादव (पठान टोला), को गंभीर हालत में बहराइच से लखनऊ रेफर किया गया है। आईसीयू में उनकी जिंदगी एक पतली डोर पर टिकी है।

“पापा, शाम को आऊंगा…”

विवेक की पत्नी का दिल मोबाइल स्क्रीन पर अटक गया। आखिरी कॉल में विवेक ने कहा था, “पापा को बोल देना, मैं जल्दी लौटूंगा।” अब वही फोन खामोश है और विवेक सफेद चादर में लिपटे हैं। परिवार की आंखें सूनी, घर में सन्नाटा।

कौन जिम्मेदार?

बस में कोई यात्री घायल नहीं हुआ, मगर हादसे की जिम्मेदारी अब तक साफ नहीं। पुलिस ने जांच शुरू की है, लेकिन सवाल वही—क्या यह हादसा रफ्तार की लापरवाही का नतीजा था? क्या सड़क सुरक्षा के नियम सिर्फ कागजों तक सीमित रह गए हैं?

सिस्टम पर सवाल

हर साल सड़क हादसों में हजारों जिंदगियां लापरवाह ड्राइविंग, खराब सड़क प्रबंधन और ढीली ट्रैफिक निगरानी की भेंट चढ़ती हैं। क्या मुआवजा देना ही इंसाफ है? क्या सड़कों को सुरक्षित बनाने की कोई ठोस योजना नहीं बनेगी?

अस्पताल में मातम

बहराइच जिला अस्पताल में मंजर दिल दहलाने वाला था। परिजन अपनों का नाम पूछते रहे, मगर जवाब में सिर्फ सिर झुके और आंसुओं भरी खामोशी मिली। कोई पिता था, कोई भाई, कोई पति—सब एक पल में “था” बन गए।

सड़कें सिर्फ मंजिल तक नहीं ले जातीं, कभी-कभी जिंदगी भी छीन लेती हैं। सवाल यह है—क्या हम अब भी सबक लेंगे, या यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा?

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