प्रदूषण और अतिक्रमण से पौराणिक महत्व वाली रेठ नदी का संकट में अस्तित्व
लखनऊ, राजधानी के पौराणिक महत्व की रेठ नदी बीकेटी तहसील क्षेत्र के अंतर्गत कुुम्हरावां, खजुरी, बाजपुर गंगौरा, सरांवा, इंदारा और करीमनगर गांवों से होते हुए बाराबंकी के निंदूरा ब्लॉक में गोमती नदी से मिल जाती है। बख्शी का तालाब तहसील क्षेत्र में इस नदी का 8 किलोमीटर से अधिक का क्षेत्र आता है। जिम्मेदारों की उपेक्षा से इसके तटबंध और नदी मार्ग पर अवैध कब्जे हो गए हैं,और नदी एक छोटे नाले में सिमट कर रह गई है।प्रशासन के पास अब तक कोई ठोस कार्य योजना न होने के कारण रेठ नदी का पानी कहीं जिले के इतिहास के पन्नों की कहानी न बन जाए। यह कहना इसलिए गलत न होगा क्योंकि रेठ नदी का अस्तित्व खतरे में हैं और उसे बचाने के लिए कोई ठोस कार्ययोजना प्रशासन के पास नहीं है।रेठ नदी का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि यह बीकेटी क्षेत्र से होकर बाराबंकी जिले के शहरी व औद्योगिक इलाकों से होकर गुजरी है। जिसके कारण लोग निजी स्वार्थ के लिए इसके दुश्मन बन गए हैं। जैसे-जैसे राजधानी लखनऊ की आबादी बाराबंकी की ओर बढ़ रही है वैसे-वैसे रेठ नदी की कोख को पाटा जा रहा है।इससे न सिर्फ रेठ नदी के जीव-जन्तु विलुप्त हो गए बल्कि पशुओं को पीने लायक पानी भी नसीब नहीं हो रहा।
चार साल पहले बना था प्लान
रेठ को पुनर्जीवित कराने के लिए सत्ताधारी दल के विधायकों से लेकर पूर्व सांसद स्व.भगवती सिंह ने भी भगीरथ प्रयास किए थे। तब उच्चाधिकारियों ने संज्ञान लेकर स्थानीय प्रशासन को नदी का रिवाइवल प्लान बनाने को कहा था। उस समय क्षेत्रीय जनता के साथ विधायकों व सांसदों ने मौके पर जाकर फावड़ा चलाया था और नदी को उसके प्राचीन स्वरूप में वापस लाने की बात कही थी। लेकिन चार साल से अधिक समय बीतने के बाद भी इस एक्शन प्लान के अनुसार आज तक कोई कार्रवाई न हो सकी है।
अधिकारी रहे खामोश
पूर्व में राजधानी में तैनात रहे जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा,राजशेखर,अभिषेक कुमार और मौजूदा जिलाधिकारी सूर्यपाल गंगवार के सामने भी रेठ नदी को पुनर्जीवितकिए जाने का मुद्दा रखा जा चुका है। इन सभी अधिकारियों ने नदी का स्वरूप बहाल करने की बातें भी कहीं पर नतीजा सिफर रहा।