नई दिल्ली, 19 दिसंबर 2024, गुरुवार। बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का नाम पिछले कुछ दिनों से देश की राजनीति में छाया हुआ है। गृहमंत्री अमित शाह ने राज्य सभा में संविधान पर बहस के दौरान बाबा साहब अंबेडकर को लेकर एक बयान दिया, जिसके बाद पूरा विपक्ष भड़क गया और एक सुर में कहने लगा कि गृहमंत्री अमित शाह ने संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का अपमान किया है। इस पूरे मामले में एक दिलचस्प तथ्य यह है कि जब जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री थे, तो उनकी कैबिनेट में बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर कानून मंत्री थे। लेकिन उन्होंने नेहरू की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। अब सवाल यह है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? इसके पीछे की असली वजह क्या थी? यह एक दिलचस्प और जटिल मुद्दा है, जिसके बारे में बहुत सारी बातें कही जा सकती हैं। लेकिन मूल रूप से, यह कहा जा सकता है कि उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया क्योंकि उन्हें लगा कि उनकी कैबिनेट में उनकी बातों को पर्याप्त महत्व नहीं दिया जा रहा था। इस इस्तीफे की असली वजह क्या थी, आज आपको विस्तार से बताते हैं।
हिंदू कोड बिल: अंबेडकर के इस्तीफे की असली वजह क्या थी?
बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के इस्तीफे की कहानी बहुत दिलचस्प है। दरअसल, 11 अप्रैल 1947 को अंबेडकर ने संविधान सभा में हिंदू कोड बिल का प्रस्ताव रखा था। इस बिल में हिंदू परिवारों के लिए कुछ महत्वपूर्ण कानून बनाए जाने थे, जैसे कि किसी परिवार के पुरुष की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में उसकी विधवा, बेटे और बेटी को समान अधिकार देना। इस बिल में हिंदू पुरुषों को एक से ज्यादा शादी करने से रोकने और महिलाओं को तलाक के अधिकार देने की भी बात थी। लेकिन आजाद भारत के समय यह बिल संसद से पारित नहीं हो पाया और इसके विरोध में अंबेडकर ने 27 सितंबर 1951 को नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। यह घटना भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो हमें यह याद दिलाती है कि सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन की प्रक्रिया में अक्सर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
हिंदू कोड बिल: अंबेडकर के इस्तीफे की कहानी का असली सच!
हिंदू कोड बिल को लेकर काफी विरोध हुआ था। पंडित नेहरू अंबेडकर के साथ थे, लेकिन संविधान सभा के कुछ लोगों की आपत्ति के बाद इसे 9 अप्रैल 1948 को सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया गया। 1951 में प्रधानमंत्री नेहरू के समर्थन के बाद कानून मंत्री बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने 5 फरवरी 1951 को इस बिल को संसद में पेश किया। लेकिन इस बिल का संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह विरोध हुआ। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में संसद के अंदर विरोध हुआ, जबकि संसद के बाहर हरिहरानंद सरस्वती उर्फ करपात्री महाराज के नेतृत्व में विरोध हुआ। करपात्री महाराज ने तो नेहरू को आमने-सामने की चुनौती भी दे दी। इसके अलावा इस बिल को लेकर नेहरू को ये भी चुनौती दी गई कि जो सरकार चल रही है, वो जनता की ओर से चुने गए प्रतिनिधियों की सरकार नहीं है, लिहाजा उन्हें जनता के इतने बड़े फैसले करने का अधिकार नहीं है।
अंबेडकर का इस्तीफा: हिंदू कोड बिल की राजनीति और नेहरू सरकार की परीक्षा!
1951 के आखिर में आम चुनाव होने वाले थे, जिसमें नेहरू सरकार की परीक्षा होनी थी। इस बीच हिंदू कोड बिल को लेकर विरोध बढ़ रहा था। पंडित नेहरू ने इस बिल को कुछ दिनों के लिए ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश की, लेकिन इसकी वजह से अंबेडकर नाराज हो गए। अंबेडकर का कहना था कि उन्हें भारतीय संविधान के बनने से ज्यादा खुशी तब होगी, जब ये बिल संसद से पास हो जाएगा। लेकिन बिल पास नहीं हुआ और अंबेडकर ने 27 सितंबर 1951 को पंडित नेहरू की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। अंबेडकर ने अपने इस्तीफे के साथ एक पत्र भी लिखा था, जिसमें उन्होंने अपने इस्तीफे की वजह बताई थी। लेकिन यह पत्र आज की तारीख में रिकॉर्ड से गायब है। हालांकि, अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स और भारतीय विदेश मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार, अंबेडकर की नेहरू से नाराजगी सरकार में उचित स्थान न दिए जाने और अनुसूचित-जाति-जनजाति समुदाय पर हो रहे अत्याचार को न रोक पाने के अलावा और भी कई विषयों पर थी।