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Monday, August 4, 2025

इस्तीफे की व्यथा-कथा

हसमुख उवाच

नेता जी इस्तीफा दे चुके थे, लेकिन चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं, क्योंकि इस्तीफा देने के बाद जो होना था वह नहीं हुआ था, नेता जी के चमचों ने जो इस्तीफे के बाद की संभावनाएं बताई थीं उन सब पर पानी फिर गया था, अर्थात इस्तीफे के बाद के हालात पर जो अनुमान चमचों ने लगाया था, वह गलत निकला ,नेता जी उस घड़ी को कोस रहे थे जब उन्होंने चमचों के अनुमान विश्वास कर लिया था और समझा था कि इस्तीफे की रणनीति सटीक परिणाम देगी!

इस्तीफे के बाद सारे परिणाम उल्टे निकले ,नेता जी के पैरों तले जमीन खिसक गई, चमचों की सलाह पर और विरोधी पार्टियों की मीठी मीठी बातों पर विश्वास करके उन्होंने इस्तीफा तो दे दिया था परंतु पार्टी अध्यक्ष ने उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया और इस्तीफा मंजूर करके वह किसी का फोन अटैण्ड करने लगे, नेता जी उनके सामने खड़े रहे पार्टी अध्यक्ष ने उन्हें बैठने का इशारा तक नहीं किया उल्टा जाने का इशारा कर दिया!

नेता जी ने सोचा था कि पार्टी अध्यक्ष उन्हें मनाएंगे ,वो नखरे दिखाएंगे, फिर पुचकारेंगे,पार्टी ने उन्हें कहां से कहां पहुंचाया यह याद दिलाएंगे और आग्रह करके इस्तीफा वापस लेने को कहेंगे ,लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ, इस्तीफा लेते समय पार्टी अध्यक्ष ने तीखी नजरों से देखा था, मुंह बनाया था और फिर दरवाजे की तरफ इशारा कर दिया था, नेता जी को इस बात से गहरा धक्का लगा था!
बाहर आए तो मीडिया वालों ने घेर लिया, खोद खोद कर पूछ रहे थे कि ‘आप पार्टी अध्यक्ष से क्यों मिले? ‘आप इतने मायूस क्यो दिख रहे है? नेता जी ने जैसे तैसे मुस्कराने का अभिनय किया और मीडिया वालों से अपना पिण्ड छुड़ाकर किसी तरह अपनी कार में आ कर बैठे! उन्हें उस समय लग रहा था जैसे इस्तीफा दे कर वह अपना राजनीतिक क्रियाकर्म और अपने पद का दाहसंस्कार करके लौट रहे हों,दुख की बात नेता जी को यह भी लग रही थी कि ऐसे समय उन्हें सांत्वना देने के लिए एक भी चमचा साथ में नहीं था,कम्बख्त,वो सब इतने हरजाई निकले कि इस समय उनके फोन भी नहीं उठ रहे थे!

घर आकर नेता जी ने विरोधी पार्टियों के उन नेताओं को भी फोन किया, जो उन्हें इस्तीफा देने को उकसाते रहे थे और आफर करते रहे थे कि अपनी पार्टी छोड़ कर हमारी पार्टी में आ जाओ, उन धोखेबाजों ने अब जरा भी सुध नहीं ली थी,जब वो इस्तीफा दे चुके हैं, फोन पर सभी व्यस्तता का रोना रोते रहे, कोई अपने फार्म हाउस पर था,कोई कही था कोई कही था!

नेता जी अब नींद से जागे थे लेकिन अब धूप ढल चुकी थी, अपनी पार्टी में वह अब गद्दार, और दलबदलू जैसे विशेषण पाने वाले थे, आधे किसी के, और आधे किसी के होने का परिणाम अब उनके सामने आ चुका था, अब नेता जी को लग रहा था कि चुपके चुपके विरोधी पार्टियों के साथ चाय, डिनर, लंच लेने का क्या परिणाम होता है। उद्विग्न हुए नेता जी ने अपना टीवी आन किया, सोच कर कि शायद ध्यान बंट जाए लेकिन उस पर भी जो गाना आ रहा था उसके बोल थे_ ‘दिल के अरमां आंसुओं में बह गये ‘

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