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Tuesday, July 1, 2025

अपनी संतान के लिए आशियाना बनाने वाले आज खुद वृद्धाश्रम के सहारे… रुला देगी बनारस के लेखक एसएन खंडेलवाल की आपबीती!

वाराणसी, 19 सितंबर

साल 1983 में राजेश खन्ना और शबाना आजमी की फिल्म अवतार बड़े पर्दे पर रिलीज हुई थी, जिसका डायरेक्शन मोहन कुमार ने किया था। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे बूढ़े होने के बाद बच्चे मां-बाप के साथ बुरा बर्ताव करते हैं और कैसे वो उन्हें अपनी जिंदगी से निकाल देते हैं। दरअसल, इस फिल्म में अवतार किशन यानी कि राजेश खन्ना और राधा किशन उर्फ शबाना आजमी को उनके बेटे उनके हाल पर छोड़ देते हैं। आप सोच रहे होंगे कि यहां अवतार फिल्म का जिक्र क्यों किया जा रहा है। तो बता दें, अवतार फिल्म के राजेश खन्ना जैसा ही हाल बनारस के वयोवृद्ध लेखक श्रीनाथ उर्फ एसएन खंडेलवाल के साथ भी हुआ है। खंडेलवाल के बच्चों ने उनकी संपत्ति हड़पकर उन्हें घर से बेदखल कर दिया है। खंडेलवाल अब वाराणसी के कुश वृद्धाश्रम में रहते हैं।

एसएन खंडेलवाल कभी 80 करोड़ की संपत्ति के मालिक थे। लेकिन, उनके बच्चों ने उनकी संपत्ति से उन्हें बेदखल कर दिया। भारी मन से वे बताते हैं कि जब हम बीमार पड़े तो हमारे बच्चों ने कहा कि इसकी लाश को बाहर फेंक देना। रुंधे हुए गले से खंडेलवाल बताते हैं कि, उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि उन्हें वृद्धा आश्रम जाना पड़ेगा, लेकिन समय और परिस्थितियों के कारण उन्हें यहां आना पड़ा। हालांकि, इस दौरान वो कहते हैं कि आश्रम में बेहद अच्छा माहौल है और यहां पर दूसरे कई वृद्ध भी हैं। इसके अलावा यहां होने वाले अलग-अलग कार्यक्रमों के कारण भी उनका मन लगा रहता है, लेकिन खासतौर पर तीज त्यौहार के समय परिवार की यादें परेशान करने लगती है। हर पल मन में परिवार की पुरानी यादें घूमने लगती है।

आपबीती सुनाते हुए खंडेलवाल कहते हैं कि उनका जन्म बनारस में ही हुआ था। उन्होंने बच्चों का बड़े लाड, प्यार और दुलार के साथ पालन पोषण किया। उन्हे उंगली पकड़कर चलना सिखाया, सहारा देने वाली लाठी दर्द देने वाली बन जाए और वृद्धावस्था में साथ छोड़ जाए ऐसी कभी कल्पना नहीं की थी। बेटी और दामाद सुप्रीम कोर्ट में वकील है। लोगों को न्याय दिलाते हैं, लेकिन जिनसे सहारे की आस थी, वह ही उदास छोड़ गए। खंडेलवाल अब आंखों में आंसू लिए चेहरे पर मुस्कान बिखेरते रहते हैं। खंडेलवाल आगे बताते हैं कि, विडंबना है कि बच्चों के लिए तमाम कुर्बानियां देने और दुख सहने के बाद भी कई मां-बाप को बुढ़ापे में अपनी संतान से दुत्कार ही नसीब होती है। दुखद ये होता है कि जिसे वो अपनी जिंदगी में सबसे ज्यादा चाहते हैं, वहीं उन्हें वृद्धाश्रम की चौखट पर छोड़ देते हैं।

बच्चों की उंगलियां थामें, उन्हें स्कूल के लिए तैयार करते, यूनिफार्म पहनाते, होमवर्क करवाते, हरे-भरे, कंटीले रास्तों पर चलते-चलते कब बुढ़ापे की दहलीज आ जाती है समझ ही नहीं पाते। कुछ बच्चे वृद्ध मां-बाप को सब कुछ भूलाकर वृद्धाश्रम की चौखट पर छोड़ आते हैं। अविश्वसनीय ही लगता है। लेकिन वाराणसी के वरिष्ठ लेखक एसएन खंडेलवाल के त्याग, बलिदान, प्रेम, आत्मीयता को भूलाकर उनके बच्चे अपने जीवन की आजादी में उन्हें ही रोड़ा मानने लगे। उन्हीं पिता की उपस्थिति असहनीय हो जाती है, उनसे ही अलग होने का मन बना लेते हैं। आंखों में आंसू लिए खंडेलवाल बताते हैं कि जब वे बीमार थे तो उनके बेटे ने कहा कि इस बुड्ढे की लाश घर से बाहर फेंक दिया जाए। यह सुनकर खंडेलवाल इतने दुखी हुए कि उन्होंने करोड़ों की संपत्ति छोड़कर वृद्धाश्रम चले आए। लेखक बताते हैं कि हमने अब तक 400 से अधिक किताबें लिखी हैं। इसमें 18 पुराण, 21 उपपुराण और तंत्र की करीब 400 किताबें शामिल हैं। अभी वे लेखन कार्य में लगे हुए हैं। लेकिन, बच्चों की बेरुखी ने उन्हें बेघर कर दिया है। अपने बच्चों के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि हमारे दो बेटे और एक बेटी थी। एक बेटा मर चुका है। बेटे अनूप खंडेलवाल के बारे में वह कहते हैं कि उसके पास लाखों की जायदाद है। वह बनारस में रहता है। लेकिन आजतक उनकी सुधि तक नहीं ली होगी।

खंडेलवाल की दर्दभरी कहानी सुनकर यहीं लगा कि अशक्त, लाचार, बेबस जिंदगियों ने हमें सांसें दी हैं, हमारे जीवन को पहचान दी है, हमें हमारे वजूद से मिलाया है, वो रहे हैं तो हम हैं, अन्यथा कहीं भटक रहे होते उनके किए गए कर्म अहसान नहीं होते पर उन अहसानों को अपने मन में सदा याद रखना चाहिए। उनकी जगह हमारे दिलों में और घर में होनी चाहिए, वृद्धाश्रम में नहीं।

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