नई दिल्ली, 15 जुलाई 2025। ओडिशा के बालासोर में एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। फकीर मोहन स्वयं शासित यूनिवर्सिटी की एक छात्रा, जो यौन उत्पीड़न के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रही थी, ने इंसाफ न मिलने की निराशा में खुद को आग के हवाले कर दिया। 14 जुलाई को यह बेटी जिंदगी की जंग हार गई, लेकिन उसकी चीखें आज भी सवाल बनकर गूंज रही हैं—आखिर कब तक देश की बेटियां इस तरह टूटती और जलती रहेंगी?
राहुल गांधी का गुस्सा: “यह आत्महत्या नहीं, सिस्टम की हत्या है”
इस घटना ने न केवल सामाजिक, बल्कि राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचा दी है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इस दुखद घटना पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “ओडिशा में इंसाफ के लिए लड़ती एक बेटी की मौत, सीधे-सीधे बीजेपी के सिस्टम द्वारा की गई हत्या है।” राहुल ने सिस्टम पर निशाना साधते हुए कहा कि इस बहादुर छात्रा ने यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन उसे न्याय के बजाय धमकियां, प्रताड़ना और अपमान मिला। उन्होंने सवाल उठाया, “ओडिशा हो या मणिपुर, देश की बेटियां जल रही हैं, टूट रही हैं, और आप खामोश बैठे हैं। देश को आपकी चुप्पी नहीं, जवाब चाहिए।” राहुल गांधी का यह बयान न केवल सत्ताधारी पार्टी पर एक करारा प्रहार है, बल्कि यह उस सिस्टम पर भी सवाल उठाता है जो बार-बार पीड़ितों को इंसाफ देने में नाकाम रहता है।
मुख्यमंत्री का आश्वासन: सजा और मुआवजा
इस बीच, ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने इस घटना पर कड़ा रुख अपनाने का वादा किया है। उन्होंने कहा कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी। आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है, और पीड़िता के परिवार के लिए 20 लाख रुपये के मुआवजे का ऐलान किया गया है। साथ ही, इस मामले की गहन जांच के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या मुआवजा और जांच का वादा उस बेटी की जान वापस ला सकता है? क्या यह सजा उस दर्द को कम कर सकती है, जो एक बेटी ने इंसाफ के लिए तड़पते हुए सहा?
सिस्टम की नाकामी का एक और सबूत
छात्रा ने अपने शिक्षक पर यौन और मानसिक उत्पीड़न का गंभीर आरोप लगाया था। उसकी आवाज को सुना गया, लेकिन इंसाफ की राह में उसे बार-बार ठोकरें खानी पड़ीं। यह घटना सिर्फ एक बेटी की त्रासदी नहीं, बल्कि उस सिस्टम की विफलता का प्रतीक है जो पीड़ितों को संरक्षण देने के बजाय उन्हें और दर्द देता है।
आवाज उठाने का समय
यह घटना हमें एक बार फिर सोचने पर मजबूर करती है—क्या हमारी बेटियां सुरक्षित हैं? क्या हमारा सिस्टम उन्हें वह सम्मान और सुरक्षा दे पा रहा है, जिसका वे हकदार हैं? यह सवाल हर नागरिक के मन में गूंजना चाहिए कि आखिर कब तक देश की बेटियां जलती रहेंगी? यह समय चुप्पी तोड़ने का है, यह समय इंसाफ की मांग करने का है। क्योंकि अगर आज हम खामोश रहे, तो कल एक और बेटी की चीख खामोशी में दब जाएगी।