सोलहवीं विधानसभा के चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ भगवा दल सत्ता में आया। आखिर ऐसा क्या था जो 2017 में भाजपा अचानक छलांग लगाते हुए 300 पार पहुंच गई? गठबंधन के उस समय के साथी अपना दल और ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को मिला लें तो 325 सीटें मिलीं। समाजवादी पार्टी 47 के साथ वहां पहुंच गई, जहां 2012 में भाजपा थी। बसपा तो 19 पर ही सिमट गई और कांग्रेस दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू सकी।
वैसे तो यह कहानी काफी विस्तार लेती है, जिसमें भाजपा के भीतर से लेकर बाहर तक और दूसरी पार्टियों तक के राजनीतिक ऑपरेशन के प्रसंग हैं। पहला तो यही, उन नेताओं को कठोरता के साथ खिलाड़ी के बजाय दर्शक की भूमिका में बैठाया गया, जो हॉकी के पुराने खिलाड़ियों की तरह सिर्फ घास के मैदान पर खेलने के आदी थे। एस्ट्रोटर्फ पर नहीं…।
इसके साथ ही भाजपा ने चुनाव में कमाल किया तो उसकी वजहें रहीं- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिंतन से 2013 में गुजरात से दिल्ली की राजनीति में बतौर प्रधानमंत्री उम्मीदवार लाकर भाजपा की केंद्रीय राजनीति का चेहरा बनाए गए नरेंद्र मोदी पर लोगों का विश्वास। आशावाद। राष्ट्रीयता। विकास और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद। मोदी के भरोसेमंद साथी और उनके साथ कदम पर कदम मिलाकर कठोर प्रशासक की तरह काम करने वाले अमित शाह की नई सोशल इंजीनियरिंग। रणनीतिक तरीके से बूथ प्रबंधन और गैर यादव व गैर जाटव को एकजुट करना।
यह भरोसा दिलाना कि भाजपा सिर्फ ब्राह्मणों-वैश्यों की पार्टी नहीं है। चुनाव अभियान में योगी आदित्यनाथ जैसे आक्रामक हिंदुत्ववादी चेहरे को प्रचार के लिए पश्चिम से उतारकर अखिलेश सरकार के तुष्टीकरण नीति पर पूरी ताकत से हमला कराकर हिंदुत्व का एजेंडा सेट करना। कल्याण की तरह हिंदुत्व की धारा की पहचान वाले पिछड़ी जाति के नेता केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर अगड़ों के साथ पिछड़ों को जोड़ना। केंद्र सरकार के दलित एजेंडे, डॉ. भीमराव आंबेडकर के साथ संत रविदास सहित अन्य महापुरुषों के नाम, स्थान और उनके सम्मान पर काम। अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए किए गए कार्य।
नरेंद्र मोदी की भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर 20 अक्तूबर 2013 को कानपुर में रैली थी। लोकसभा चुनाव 2014 के मद्देनजर प्रदेश में मोदी की यह पहली विजय शंखनाद रैली थी। इसी रैली से उन्होंने हिंदुत्व के साथ राष्ट्रीयता व विकास का एजेंडा सेट करना शुरू कर दिया था। चूंकि यह रैली लोकसभा चुनाव 2014 को लेकर थी, तो जाहिर है कि उनके निशाने पर पहले नंबर पर कांग्रेस ही थी। पर, इन रैलियों की शृंखला में उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में बसपा और सपा को भी कांग्रेस के साथ निशाना बनाया। गुजरात के कामों, वहां की कानून-व्यवस्था के सहारे तत्कालीन केंद्र की कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार को घेरते हुए प्रदेश की बदहाली लोगों को समझाई। प्रदेश की कानून-व्यवस्था, हिंदुओं के साथ किए गए दोयम दर्जे के व्यवहार की घटनाओं को मुद्दा बनाया। तुष्टीकरण नीति पर हमला बोला। इन सबसे लग गया था कि मोदी सिर्फ 2014 का नहीं, बल्कि उससे आगे 2017 का भी एजेंडा सेट कर रहे हैं, जिसमें हिंदुत्व के साथ राष्ट्रीयता और विकास शामिल होगा। भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र तिवारी ने उस समय चुटकी लेते हुए कहा भी था- मोदी का हिंदुत्ववादी चेहरा हमने नहीं, खुद विपक्ष ने बनाया है। इससे मोदी का नेतृत्व होने का मतलब ही भाजपा का राष्ट्रीयता के साथ विकास व हिंदुत्व के एजेंडे पर काम करने का संदेश है।