वाराणसी, 21 जून 2025: जब सारी दुनिया योग दिवस के रंग में डूबी रही, वॉशिंगटन से मास्को और मदुरै से लंदन तक योग की धूम मची रही, तब योग की जन्मभूमि — काशी का नागकूप — सन्नाटे में डूबा रहा। यह वही पवित्र स्थल है, जहाँ महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र की रचना की थी। लेकिन आज यह ऐतिहासिक धरोहर सरकारी उदासीनता और लापरवाही की चपेट में है।
महर्षि पतंजलि की तपोभूमि
काशी के जैतपुरा में स्थित नागकूप वह स्थान है, जहाँ महर्षि पतंजलि ने गहन तपस्या कर भगवान शिव के लिए 80 फीट गहरे शिवलिंग की स्थापना की थी। यहीं से उन्होंने योग को सूत्रबद्ध कर दुनिया को अमूल्य ज्ञान दिया। स्कंदपुराण के काशीखण्ड में इसे ‘कारकोटक वापी’ कहा गया है, जो सर्पराज कारकोटक की तपस्या और पाताल गमन का मार्ग माना जाता है। यह स्थल न केवल योग का उद्गम है, बल्कि महान व्याकरणाचार्य पाणिनि और उनके शिष्य पतंजलि की कर्मभूमि भी है।
उपेक्षा की मार
योग को वैश्विक मंच पर ले जाने वाली सरकारों के लिए यह स्थान केवल चुनावी रैलियों तक सिमटकर रह गया है। न योग दिवस पर यहाँ कोई सरकारी आयोजन हुआ, न ही किसी जनप्रतिनिधि ने इसकी सुध ली। गंदगी और अव्यवस्था के बीच यह पवित्र स्थल अपनी गरिमा खोता जा रहा है। स्थानीय निवासियों का कहना है, “जब पूरी दुनिया योग की बात करती है, तब इसके जन्मस्थल की यह हालत दुखद है।”
जागने का समय
नागकूप केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत के वैदिक ज्ञान, आयुर्वेद, व्याकरण और योग की अमूल्य धरोहर है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्थल को संरक्षित कर इसे विश्व धरोहर के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।
आवाज उठाने की जरूरत
योग को गर्व से वैश्विक पहचान दिलाने वाली सरकार से अब अपेक्षा है कि वह अपनी जड़ों की सुध ले। क्या काशी का यह पवित्र स्थल फिर से अपनी खोई गरिमा पाएगा? यह सवाल हर उस भारतीय के मन में है, जो अपनी सांस्कृतिक धरोहर से प्रेम करता है।