नई दिल्ली, 4 दिसंबर 2024, बुधवार। अजमेर में स्थित ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ नाम की एक मस्जिद है, जो अपने अनोखे नाम के कारण हमेशा से चर्चा में रहती है। लेकिन हाल ही में, यह मस्जिद एक नए विवाद में घिर गई है, जब अजमेर के उप महापौर नीरज जैन ने दावा किया है कि यह मस्जिद वास्तव में एक हिंदू जैन मंदिर थी, जिसे बाद में मस्जिद में बदल दिया गया था। नीरज जैन का कहना है कि आक्रांताओं ने इसे ध्वस्त किए जाने से पहले यह भवन मूल रूप से संस्कृत महाविद्यालय और मंदिर था। उन्होंने यह भी कहा कि यहां मौजूद मूर्तियों और कलाकृतियों को हटाकर इसको मस्जिद में बदला गया था।
नीरज जैन ने आगे कहा कि इस बात के साफ सबूत हैं कि झोपड़े की जगह पर एक संस्कृत महाविद्यालय और मंदिर मौजूद था। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया है, लेकिन वहां अवैध गतिविधियां चल रही हैं और पार्किंग पर भी अतिक्रमण किया गया है। नीरज जैन ने मांग की है कि एएसआई को झोपड़े के अंदर रखी मूर्तियों को बाहर लाना चाहिए और एक संग्रहालय बनाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि नालंदा और तक्षशिला की तरह इसे भी भारतीय संस्कृति, शिक्षा और सभ्यता पर बड़े हमले के तहत निशाना बनाया गया था।
यह विवाद अब अजमेर में एक बड़े विवाद का रूप ले रहा है, जिसमें कई लोगों ने अपनी राय व्यक्त की है। कुछ लोगों का कहना है कि यह मस्जिद वास्तव में एक हिंदू जैन मंदिर थी, जबकि अन्य लोगों का कहना है कि यह एक मस्जिद है और इसे ऐसे ही रहने देना चाहिए। यह विवाद अब आगे की जांच और चर्चा के लिए तैयार है।
अजमेर की ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद: इतिहास, रहस्य और विवाद
अजमेर की ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद का एक दिलचस्प इतिहास है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की वेबसाइट के अनुसार, यह मस्जिद 1199 ईस्वी में दिल्ली के पहले सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनवाई गई थी। यह मस्जिद दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के समकालीन है। हालांकि, इस मस्जिद के परिसर में एक बरामदे में बड़ी संख्या में मंदिरों की मूर्तियां रखी गई हैं, जो लगभग 11वीं-12वीं शताब्दी के दौरान इसके आसपास एक हिंदू मंदिर के अस्तित्व को दर्शाती हैं। यह मस्जिद मंदिरों के खंडित अवशेषों से निर्मित है, जिसे ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ के नाम से जाना जाता है।
अजमेर की ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद का इतिहास: जानें कैसे एक मंदिर को मस्जिद में बदल दिया गया
अजमेर की ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। इतिहासकारों के अनुसार, 1192 ईस्वी में तराइन की दूसरी लड़ाई के बाद, मोहम्मद गोरी की सेना ने पृथ्वीराज चौहान को हराया और अजमेर पर कब्जा कर लिया। इसके बाद, मोहम्मद गोरी के सिपहसालार कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1199 में इस स्थान पर एक मंदिर को मस्जिद में बदल दिया। यह मस्जिद आज ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ के नाम से जानी जाती है। इस मस्जिद के नाम के पीछे एक रोचक कहानी है। कहा जाता है कि यहां ढाई दिन का मेला आयोजित किया जाता था, जिस कारण इसे ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ नाम दिया गया।
अजमेर की ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद का रहस्य: स्तंभ, शिलालेख और कुरान की आयतें क्या बताती हैं?
अजमेर की ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद में एक दिलचस्प शिलालेख है, जो संगमरमर से बना हुआ है। यह शिलालेख मस्जिद के मेन दरवाजे के बाईं तरफ लगा हुआ है, और इसमें संस्कृत में एक विद्यालय का उल्लेख किया गया है। इस मस्जिद में बड़ी संख्या में स्तंभ हैं, जो लगभग 25 मीटर ऊंचे हैं। इन स्तंभों को देखकर अक्सर लोग कहते हैं कि यह एक मस्जिद नहीं है, बल्कि एक मंदिर है। हालांकि, जब मस्जिद के अंदर नई दीवारें बनवाई गईं, तो उन पर कुरान की आयतें लिखी गईं, जो इसे एक मस्जिद के रूप में प्रमाणित करती हैं।