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Saturday, April 20, 2024

नवजातों को तकनीक की मदद से रुलाकर फेफड़ा सक्रिय किया जाएगा

नवजात बेशुमार खुशियां लेकर आता है, मगर पैदा होते ही न रोये तो जान का खतरा भी बन आता है। वह जितनी तेजी से रोता है, फेफड़ा उतना ही मजबूत होता है। मगर, कम वजन वाले बच्चे नहीं रोते, जिससे फेफड़ा सक्रिय नहीं हो पाता। ऐसे नवजातों को तकनीक की मदद से रुलाकर फेफड़ा सक्रिय किया जाएगा।

ऐसे नवजातों के लिए पॉजीटिव एंड एक्सपाइरेटरी प्रेशर (पीईईपी) जीवनदायिनी साबित हुआ है। देश-विदेश में किए गए शोध में सामने आया है कि पीईईपी की मदद से नवजात मृत्युदर में 40 फीसदी की गिरावट आई है। दरअसल, पैदा होने के बाद 90 फीसदी नवजात तत्काल रोते हैं, मगर 10 फीसदी को दवा व देखभाल की जरूरत होती है।

इनमें ज्यादातर कम वजन वाले होते हैं। एक किग्रा से कम वजन वाले गंभीर माने जाते हैं। इनके लिए पीईईपी को उपयुक्त माना गया है। विभिन्न शोध के मेटा एनालिसिस (विश्लेषण) में भी यह साबित हुआ है। मेटा एनालिसिस में एसजीपीजीआई के नियोनेटल विभाग के पूर्व विशेषज्ञ डॉ. आकाश पंडिता शामिल हैं।

उनके साथ ग्रीस के डॉ. आई बेलोश और मुंबई के डॉ. आशीष पिल्लई भी शामिल रहे। उन्होंने दिसंबर 2020 तक के 4149 नवजात से जुड़ी 10 शोध रिपोर्ट का मेटा विश्लेषण किया जिसे अमेरिकन जर्नल ऑफ पेरिनेटोलॉजी में प्रकाशित किया गया है।

पीईईपी तकनीक से फेफडे़ में रोने जैसी प्रतिक्रिया

डॉ. आकाश पंडिता ने बताया कि पीईईपी ऑक्सीजन सपोर्ट आधारित एक छोटे से उपकरण के जरिए दिया जाता है। इससे नवजात के फेफड़े में वही प्रतिक्रिया होती है जो रोने पर होती है। इससे फेफड़ा फूल जाता है और क्रियाशीलता बढ़ जाती है। इससे आधा किग्रा तक के वजन वाले बच्चों को भी बचाया जा सकता है।

यूपी में नवजातों की स्थिति

32 की मौत हो जाती है प्रति हजार नवजातों में

22 पर लाने का लक्ष्य है वर्ष 2026 तक

anita
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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