नई दिल्ली, 1 जून 2025, रविवार: पश्चिमी दिल्ली का विष्णु गार्डन, कभी शांत और सुकून भरा रिहायशी इलाका, आज एक अनचाहे तूफान की चपेट में है। यहाँ की गलियों में अब न तो बच्चों की हंसी गूंजती है, न ही पड़ोसियों की आपसी बातचीत का रंग बाकी है। इसके बजाय, हवा में तैरते जींस के महीन कण, फैक्ट्रियों का शोर, और एक बदलती डेमोग्राफी का डर इस इलाके को निगल रहा है। इसे यहाँ के लोग “जींस जिहाद” कहते हैं—एक ऐसा संकट, जो न सिर्फ पर्यावरण को बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी तहस-नहस कर रहा है।
जींस फैक्ट्रियों का कहर: प्रदूषण और बीमारियों का जाल
करीब सात साल पहले, विष्णु गार्डन और आसपास के ख्याला गांव में जींस की छोटी-छोटी फैक्ट्रियों ने पांव पसारे। शुरू में किराए के मकानों में शुरू हुई ये फैक्ट्रियाँ अब इस इलाके की रीढ़ बन चुकी हैं, लेकिन इस रीढ़ ने यहाँ के मूल निवासियों की कमर तोड़ दी है। हवा में घुलते जींस के बारीक कण (PM 2.5 और PM 10 स्तर के) लोगों के फेफड़ों और मुंह तक पहुंच रहे हैं, जिसकी वजह से मुंह का कैंसर और सांस की बीमारियाँ आम हो गई हैं। जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण तो जैसे इस इलाके की नियति बन चुके हैं।
एक सिख परिवार की दर्दनाक कहानी: ग्राउंड रिपोर्ट में एक सिख परिवार की आपबीती सामने आई। परिवार के बड़े भाई को मुंह का कैंसर ने जकड़ लिया है। ऑपरेशन के बाद भी उनकी आवाज़ दब चुकी है, बोलना एक जंग बन गया है। उनकी बुजुर्ग माँ अस्थमा की शिकार हैं, जिन्हें हर सांस के लिए जूझना पड़ता है। छोटे भाई ने आंसुओं के साथ बताया, “हमारा घर बेचकर पलायन करने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा। ये जींस जिहाद हमें लील रहा है।”
हिंदू परिवार की त्रासदी: एक अन्य हिंदू परिवार की कहानी और भी दिल दहलाने वाली है। इस परिवार के मुखिया, जिन्होंने कभी तंबाकू, बीड़ी या सिगरेट को हाथ नहीं लगाया, फिर भी मुंह के कैंसर की चपेट में आ गए। इलाज में 5 लाख रुपये से ज्यादा खर्च हो चुके हैं, और परिवार अब गरीबी रेखा के नीचे पहुंच गया है। उनका कहना है, “ये जींस फैक्ट्रियों के कण ही हमें बीमार कर रहे हैं। हम सरकार से मुआवजा या इन फैक्ट्रियों को हटाने की गुहार लगाते हैं।”
बदलता सामाजिक ताना-बाना: डर और दहशत का माहौल
विष्णु गार्डन की गलियों में अब “घर बिकाऊ है” के बोर्ड आम नज़र आते हैं। स्थानीय हिंदू और सिख परिवार पलायन के लिए मजबूर हैं। वजह सिर्फ प्रदूषण नहीं, बल्कि इलाके की बदलती डेमोग्राफी भी है। यहाँ की महिलाएँ बताती हैं कि सूरज ढलने के बाद बाहर निकलना असुरक्षित हो गया है। जींस फैक्ट्रियों से सामान लाने-ले जाने वाले टेंपो की भीड़ ने सड़कों को जाम कर रखा है। रात के अंधेरे में हिंदू-सिख घरों के सामने मांस की हड्डियाँ फेंकी जाती हैं, जिसे स्थानीय लोग जानबूझकर की गई हरकत मानते हैं।
महिलाओं का आरोप है कि फैक्ट्रियों में काम करने वाले कुछ मुस्लिम युवक छेड़खानी करते हैं, और दिल्ली पुलिस की शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। इसके अलावा, इलाके में अवैध मदरसों और नॉनवेज ढाबों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो स्थानीय लोगों के लिए असहजता का सबब बन रहे हैं। शुक्रवार की नमाज़ के दौरान सड़कों पर भीड़ इतनी बढ़ जाती है कि आवाजाही लगभग ठप हो जाती है।
अवैध मदरसे और ट्रैफिक का आतंक
स्थानीय लोगों का कहना है कि कोचिंग सेंटर के नाम पर अवैध मदरसे चल रहे हैं, जो ध्वनि प्रदूषण और कट्टरता को बढ़ावा दे रहे हैं। दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष का दावा है कि ये सिर्फ कोचिंग सेंटर हैं, कोई मदरसा नहीं। लेकिन सच्चाई जो भी हो, इलाके में ट्रैफिक जाम और अराजकता का माहौल दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा है।
एक सुलगता सवाल: क्या है इसका हल?
विष्णु गार्डन का “जींस जिहाद” न सिर्फ पर्यावरणीय संकट है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक टकराव की एक ऐसी कहानी है, जो दिल्ली के इस हिस्से को धीरे-धीरे खोखला कर रही है। हिंदू और सिख परिवारों का पलायन, बढ़ती बीमारियाँ, और बदलता सामाजिक ढांचा—ये सभी एक बड़े संकट की ओर इशारा करते हैं। सवाल यह है कि क्या सरकार और प्रशासन इस मुद्दे पर चुप्पी तोड़ेगा? क्या इन फैक्ट्रियों को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे? या फिर विष्णु गार्डन की ये गलियाँ हमेशा के लिए अपनी पहचान खो देंगी?