नई दिल्ली, 28 मई 2025, बुधवार। पंचकूला की सर्द रात में, एक कार की खामोशी ने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया। प्रवीण मित्तल, उनकी पत्नी रीना, माता-पिता और तीन मासूम बच्चों की जिंदगी एक पल में थम गई। क्या वजह थी कि एक वक्त ऐशो-आराम की जिंदगी जीने वाला ये परिवार इतनी गहरी निराशा में डूब गया कि उसने सामूहिक आत्महत्या जैसा दिल दहलाने वाला कदम उठा लिया? ये सवाल हर किसी के जेहन में गूंज रहा है, और इस परिवार की कहानी सुनकर आंखें नम हो जाती हैं।
जब किस्मत ने दिया धोखा
प्रवीण मित्तल कभी एक कामयाब कारोबारी थे। हिमाचल के बद्दी में उनकी फैक्ट्री गुलजार थी, सैकड़ों कर्मचारी काम करते थे। टूर एंड ट्रैवल का उनका धंधा आसमान छू रहा था। पंचकूला में दो आलीशान फ्लैट, लग्जरी गाड़ियां—उनके पास सब कुछ था। लेकिन जिंदगी का रंग तब बदला, जब कर्ज का बोझ उनके सिर पर सवार हो गया। 15-20 करोड़ का कर्ज! बैंक ने उनकी फैक्ट्री, फ्लैट, गाड़ियां—सब कुछ जब्त कर लिया। अपनों की बेरुखी ने प्रवीण को अंदर से तोड़ दिया। वो सपनों का महल, जो उन्होंने सालों की मेहनत से बनाया था, पलभर में मिट्टी में मिल गया।
सपनों से सस्ते किराए के मकान तक
कर्ज के दबाव में प्रवीण ने हिसार के बरवाला को छोड़ा, फिर देहरादून, मोहाली और खरड़ में ठिकाने बदले। ससुर के घर भी कुछ वक्त गुजारा, लेकिन हालात बद से बदतर होते गए। माता-पिता की बीमारी और आर्थिक तंगी ने उन्हें तोड़कर रख दिया। आखिरकार, पंचकूला के सकेतड़ी गांव में 8 हजार रुपये के किराए के मकान में परिवार ने पनाह ली। मकान मालिक मुनीष बताते हैं, “1 मई को वो आए थे। प्रवीण ने बताया था कि बच्चों की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ के पास रहना चाहते हैं। हंसता-खेलता परिवार था। कभी नहीं लगा कि उनके दिल में इतना बड़ा तूफान चल रहा है।”
सुसाइड नोट में छिपा दर्द
प्रवीण ने सुसाइड नोट में अपने मामा के बेटे संदीप का जिक्र किया, जो उनका अंतिम संस्कार करेगा। नोट में उनका दर्द साफ झलकता है—कर्ज, अपनों की बेरुखी और जिंदगी की जंग हारने की बेबसी। संदीप ने बताया कि प्रवीण का एनजीओ भी फेल हो गया था। एक वक्त की रौनक अब सिर्फ यादों में सिमट चुकी थी। उनकी आखिरी गाड़ी भी कर्ज के पैसे से ली गई थी।
वो रात, वो कार और वो तौलिया
मंगलवार रात 10 बजे, सेक्टर 27 में पुनीत राणा की नजर प्रवीण की कार पर पड़ी। कार की खिड़कियों पर तौलिये लटके थे, मानो दुनिया से कुछ छिपाने की कोशिश हो। अंदर का मंजर और भी भयावह था—परिवार के लोग बेसुध पड़े थे, उल्टियां बिखरी थीं। प्रवीण तब तक होश में थे, लेकिन उनकी सांसें जवाब दे रही थीं। उन्होंने बताया कि वो बाबा बागेश्वर धीरेंद्र शास्त्री के कार्यक्रम से लौटे हैं। लेकिन उस रात, कोई चमत्कार न हुआ।
पुलिस की जांच और अनसुलझे सवाल
पंचकूला डीसीपी क्राइम अमित दहिया ने बताया, “हमें रात 10 बजे सूचना मिली। दो सुसाइड नोट मिले हैं। हैंडराइटिंग, बैंक अकाउंट और सोशल मीडिया की जांच की जा रही है। प्रारंभिक जांच में ये आत्महत्या का मामला लगता है।” प्रवीण (41), रीना (35), मां बिमला देवी, पिता देशराज मित्तल, और तीन बच्चे—हार्दिक (14), ध्रुविका (12) और डैलिसा (9)—सबका अंतिम संस्कार मनीमाजरा के श्मशान घाट में एक साथ हुआ।
एक परिवार का अंत, समाज के लिए सवाल
ये कहानी सिर्फ प्रवीण मित्तल के परिवार की नहीं, बल्कि उन तमाम लोगों की है, जो कर्ज और सामाजिक दबाव में टूट जाते हैं। क्या अपनों की थोड़ी सी हमदर्दी, समाज का सहारा, या समय पर मदद इस परिवार को बचा सकती थी? ये सवाल अब हवा में तैर रहे हैं, और जवाब की तलाश में हर कोई है। प्रवीण का परिवार भले ही चला गया, लेकिन उनकी कहानी हमें झकझोरती है—क्या हम अपने आसपास के लोगों का दर्द वक्त रहते समझ पाते हैं?