नई दिल्ली, 19 मार्च 2025, बुधवार। चालू वित्त वर्ष 2024-25 में भारत के प्रत्यक्ष कर संग्रह ने शानदार प्रदर्शन किया है। 1 अप्रैल, 2024 से 16 मार्च, 2025 तक के आंकड़ों के अनुसार, प्रत्यक्ष कर संग्रह में पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि की तुलना में 16.2 प्रतिशत की जबरदस्त वृद्धि दर्ज की गई है। इस दौरान कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह 25.86 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह वृद्धि देश की मजबूत आर्थिक स्थिति को दर्शाती है और सरकार के लिए एक सकारात्मक संकेत है, क्योंकि इससे आर्थिक विकास और कल्याणकारी योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए अधिक संसाधन उपलब्ध होंगे।
प्रत्यक्ष कर संग्रह का विवरण
प्रत्यक्ष करों में कॉर्पोरेट कर, व्यक्तिगत आयकर, प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी) और संपत्ति कर शामिल हैं। चालू वित्त वर्ष में 16 मार्च तक के आंकड़ों के अनुसार:
कॉर्पोरेट कर संग्रह: पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 10.1 लाख करोड़ रुपये की तुलना में इस साल 12.40 लाख करोड़ रुपये हो गया।
व्यक्तिगत आयकर संग्रह: पिछले साल के 10.91 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 12.90 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी): इसमें भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो पिछले वर्ष के 34,131 करोड़ रुपये से बढ़कर 53,095 करोड़ रुपये हो गया।
संपत्ति कर: हालांकि, संपत्ति कर सहित अन्य करों में मामूली गिरावट आई है, जो 3,656 करोड़ रुपये से घटकर 3,399 करोड़ रुपये रह गया।
रिफंड के बाद शुद्ध संग्रह
करदाताओं को जारी किए गए रिफंड में भी इस साल 32.51 प्रतिशत की बड़ी वृद्धि हुई है, जो 4.6 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई। रिफंड को समायोजित करने के बाद शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह 21.26 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के 18.8 लाख करोड़ रुपये की तुलना में 13.13 प्रतिशत अधिक है। यह वृद्धि सरकार की कुशल कर प्रशासन और संग्रह प्रणाली को दर्शाती है।
आर्थिक मजबूती का संकेत
प्रत्यक्ष कर संग्रह में यह उछाल देश की मजबूत व्यापक आर्थिक स्थिति को प्रतिबिंबित करता है। बढ़ते कर संग्रह से सरकार के पास बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश करने और गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने के लिए अधिक धन उपलब्ध होगा। इसके साथ ही, यह राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कम राजकोषीय घाटे का मतलब है कि सरकार को कम उधार लेना पड़ेगा, जिससे बैंकिंग प्रणाली में निजी क्षेत्र और बड़ी कंपनियों के लिए निवेश हेतु अधिक धन उपलब्ध रहेगा। इसका सीधा असर आर्थिक विकास दर में वृद्धि और रोजगार सृजन के रूप में दिखाई देता है।
कम राजकोषीय घाटे के फायदे
कम राजकोषीय घाटा न केवल आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देता है, बल्कि मुद्रास्फीति दर को भी नियंत्रण में रखता है। इससे अर्थव्यवस्था की नींव मजबूत होती है और लंबे समय तक स्थिरता के साथ विकास सुनिश्चित होता है। यह भारत जैसे विकासशील देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, जहां संसाधनों का सही उपयोग और आर्थिक संतुलन बनाए रखना प्राथमिकता है।
डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स में अंतर
जो कर सीधे आम नागरिकों से वसूला जाता है, उसे डायरेक्ट टैक्स कहते हैं। इसमें कॉर्पोरेट कर, व्यक्तिगत आयकर और शेयर या अन्य संपत्तियों पर लगने वाला कर शामिल है। वहीं, जो कर सीधे जनता से नहीं लिया जाता, लेकिन अंततः उसकी वसूली जनता से ही होती है, उसे इनडायरेक्ट टैक्स कहते हैं। इसमें एक्साइज ड्यूटी, कस्टम ड्यूटी और जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) शामिल हैं। पहले भारत में कई प्रकार के इनडायरेक्ट टैक्स प्रचलित थे, लेकिन 1 जुलाई, 2017 से इन्हें जीएसटी के तहत समाहित कर लिया गया। हालांकि, पेट्रोलियम पदार्थों और शराब पर लगने वाले कर अभी भी जीएसटी के दायरे से बाहर हैं।
टैक्स संग्रह और आर्थिक गतिविधियां
किसी भी देश में टैक्स संग्रह को आर्थिक गतिविधियों का दर्पण माना जाता है। भारत में इस साल प्रत्यक्ष कर संग्रह में वृद्धि एक सकारात्मक संकेत है। यह न केवल सरकार की आय को बढ़ाता है, बल्कि वैश्विक मंदी की आशंकाओं के बीच भारत की अर्थव्यवस्था की मजबूती को भी प्रमाणित करता है।
निष्कर्ष
कर संग्रह में यह वृद्धि भारत की आर्थिक सेहत के लिए अच्छी खबर है। इससे सरकार के पास अधिक संसाधन उपलब्ध होंगे, जिससे उसे कर्ज लेने की आवश्यकता कम होगी। साथ ही, यह वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत की आर्थिक स्थिरता और विकास की क्षमता को रेखांकित करता है। बढ़ता कर संग्रह न केवल आर्थिक विकास को गति देगा, बल्कि देश में रोजगार के अवसरों को बढ़ाने और नागरिकों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में भी योगदान देगा।