टोक्यो से दिल्ली तक: अकेलेपन की महामारी
नई दिल्ली, 17 जुलाई 2025: जापान में आज जन्म दर दुनिया में सबसे कम है, जहां हर तीसरा व्यक्ति रोमांटिक रिश्तों से दूरी बनाए हुए है। ‘कोडोकुशी’ यानी अकेले मरने की घटनाएं अब वहां आम हैं। असली रिश्तों की जगह अब एआई गर्लफ्रेंड, एनीमे किरदार और पेड कडलिंग सेवाएं ले रही हैं। क्या भारत भी इस राह पर बढ़ रहा है?
भारत का बदलता चेहरा
भारत अभी भी परिवार, रिश्तों और सामुदायिक बंधनों का देश है। लेकिन शहरी भारत में खतरे की घंटियां बज रही हैं। देर से शादियां, प्रोफेशनल्स में बर्नआउट, डिजिटल एडिक्शन और रिश्तों से बढ़ती बेचैनी साफ दिख रही है। भले ही यह संकट अभी जापान जितना गहरा नहीं है, लेकिन हमारे युवाओं की भावनात्मक थकावट अनदेखी नहीं की जा सकती।
वैश्विक संकट की झलक
दक्षिण कोरिया में जन्म दर 0.72 तक गिर चुकी है, और यूरोप में भी युवा परिवार शुरू करने से कतरा रहे हैं। भारत में अभी भी भावनात्मक जुड़ाव की गर्माहट बाकी है, लेकिन इसे बचाने के लिए सचेत प्रयास जरूरी हैं।
भारत के सामने दोराहा
हमारे पास दुनिया की सबसे युवा कार्यशक्ति है, लेकिन डिजिटल दुनिया और काम का दबाव इसे खोखला कर रहे हैं। क्या हम जापान की राह पर चलेंगे, जहां अकेलापन और खालीपन हावी है, या एक संतुलित समाज बनाएंगे, जहां रिश्ते और उद्देश्य जिंदा रहें?
आगे का रास्ता: भारत की राह
- इच्छा की नई परिभाषा: इच्छा सिर्फ पैसा, सफलता या शारीरिक सुख नहीं, बल्कि गहरा जुड़ाव, रचनात्मकता और जीवंतता है।
- मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता: जापान ने भावनात्मक दर्द को शर्मिंदगी माना, भारत को यह गलती नहीं दोहरानी चाहिए। स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थलों पर मानसिक स्वास्थ्य सहायता जरूरी है।
- वास्तविक रिश्तों का जश्न: सोशल मीडिया असली दोस्ती की जगह नहीं ले सकता। सामुदायिक मेलजोल और गहरे रिश्तों को बढ़ावा देना होगा।
- आर्थिक स्थिरता: युवाओं को आर्थिक सुरक्षा मिले, तभी वे रिश्तों और परिवार के लिए जोखिम उठा पाएंगे। गिग वर्कर्स और क्रिएटर्स के लिए बेहतर सपोर्ट सिस्टम जरूरी है।
- उद्देश्य से जोड़ें: हमारी संस्कृति सेवा और अर्थपूर्ण जीवन की कहानियों से भरी है। इसे युवाओं तक फिर से पहुंचाना होगा।
जीवंतता की जीत
जापान ने दिखाया कि जब समाज भावनाओं को भूल जाता है, तो खालीपन उसका पीछा करता है। भारत अभी भी जानता है कि कैसे दिल से दिल जोड़ा जाता है। हमें इस ताकत को सहेजना होगा। एक ऐसा भारत बनाना होगा जो न सिर्फ प्रगति करे, बल्कि भावनात्मक रूप से जीवंत भी रहे। यह हमारा मौका है—आइए, इसे गंवाएं नहीं!