वाराणसी, 29 अक्टूबर 2024, मंगलवार। स्टील की वह अठन्नी आमतौर पर आप जिसका हिसाब भी नहीं करते। अब तो चलन से भी बाहर है। मगर यही अठन्नी माता स्वर्ण अन्नपूर्णा से खजाने के रूप में इतनी मूल्यवान हो जाती है कि इसकी चाहत देश के कोने-कोने से भक्तों को काशी खींच लाती है। इस वर्ष भी मां का दर्शन करने के बाद खजाना पाने को उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों से लाखों श्रद्धालु उमड़ पड़े, जिसमें सर्वाधिक भीड़ दक्षिण भारत के दर्शनार्थियों की थी। आलम यह था कि मंदिर से एक किलोमीटर दूर तक भक्तों की कतार लगी रही। काशी में पांच दिवसीय दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस के दिन मां अन्नपूर्णा के दर्शन-पूजन से हुई। धनतेरस से अन्नकूट तक लाखों भक्तों ने मां अन्नपूर्णा के दर्शन करेंगे। भक्तों ने मां अन्नपूर्णा से धन-धान्य का आशीर्वाद मांगते हुए दिल खोल कर चढ़ावा भी चढ़ाया। स्वर्ण प्रतिमा वाले दुर्लभ मंदिर के कपाट भोर में पूजन और महाआरती के बाद खुलने के साथ दर्शन व खजाना (लावा व सिक्का) पाने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। मंदिर को रंग-बिरंगे फूलों, लतरों और वंदनवारों से सजाया गया था।
मां अन्नपूर्णा हैं अन्न की अधिष्ठात्रि
स्कन्दपुराण के ‘काशीखण्ड’ में उल्लेख है कि भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और भवानी उनकी गृहस्थी चलाती हैं। अत: काशीवासियों के योग-क्षेम का भार इन्हीं पर है। ‘ब्रह्मवैवर्त्तपुराण’ के काशी-रहस्य के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं। सामान्य दिनों में अन्नपूर्णा माता की आठ परिक्रमा की जाती है। प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन देवी के निमित्त व्रत रह कर उनकी उपासना का विधान है।
काशी में पड़ा था आकाल
जनश्रुति के अनुसार एक बार काशी में अकाल पड़ गया था। लोग भूखों मर रहे थे। महादेव भी इस लीला को समझ नहीं पा रहे थे। अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकरपुरी ने बताया कि चराचर जगत के स्वामी महादेव ने मां अन्नपूर्णा से यहीं भिक्षा मांगी थी। मां ने भक्तों के कल्याण के लिए भिक्षा के रूप में अन्न देकर वरदान दिया था कि काशी में रहने वाला कोई भी भक्त कभी भूखा नहीं सोएगा।
कलियुग में माता अन्नपूर्णा की पुरी काशी है
भगवान शंकर से विवाह के बाद देवी पार्वती ने काशीपुरी में निवास की इच्छा जताई। महादेव उन्हें साथ लेकर अपने सनातन गृह अविमुक्त-क्षेत्र (काशी) आ गए। तब काशी महाश्मशान नगरी थी। माता पार्वती को सामान्य गृहस्थ स्त्री के समान ही अपने घर का मात्र श्मशान होना नहीं भाया। तब शिव-पार्वती के विमर्श से एक व्यवस्था दी गई। वह यह कि सत, त्रेता, और द्वापर युगों में काशी श्मशान रहेगी किंतु कलिकाल में यह अन्नपूर्णा की पुरी होकर बसेगी। इसी कारण वर्तमान में अन्नपूर्णा का मंदिर काशी का प्रधान देवीपीठ हुआ। पुराणों में काशी के भावी नामों में काशीपीठ नाम का भी उल्लेख है।
कुछ ऐसा है भगवती का स्वरूप
देवी पुराण के अनुसार मां अन्नपूर्णा का रंग जवापुष्प के समान है। भगवती अन्नपूर्णा अनुपम लावण्य से युक्त नवयुवती के सदृश हैं। बंधुक के फूलों के मध्य दिव्य आभूषणों से विभूषित होकर देवी प्रसन्न मुद्रा में स्वर्ण-सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी के बाएं हाथ में अन्न से पूर्ण माणिक्य, रत्न से जड़ा पात्र तथा दाहिने हाथ में रत्नों से निर्मित कलछुल है। जो इस बात का प्रतीक है कि अन्नपूर्णा माता अन्न के दान में सदा तल्लीन रहती हैं।