नई दिल्ली, 22 मार्च 2025, शनिवार। “प्लीज किसी को मत बताना कि ये बात मैंने आपको बताई है, वरना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी। आसपास का माहौल ठीक नहीं है।” ये डर भरे शब्द थे उस साहसी टीचर के, जिसने अपनी सूझबूझ और हिम्मत से एक मासूम बेटी को बाल विवाह के अंधेरे से बाहर निकाला। यह कहानी है उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जिले के बिसरख ब्लॉक की 15 साल की आशा (बदला हुआ नाम) की, जिसने नन्ही उम्र में ही जिंदगी की कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन हार नहीं मानी।
आशा का बचपन आसान नहीं था। माँ का साया छोटी उम्र में ही छिन गया, और पिता ने दूसरी शादी कर उसे मौसी-मौसा के हवाले कर दिया। आगरा से गौतम बुद्ध नगर आए उसे दो साल बीत चुके थे। लेकिन गरीबी और आर्थिक तंगी ने उसके मौसा-मौसी को ऐसा फैसला लेने पर मजबूर कर दिया, जो आशा के भविष्य को तबाह कर सकता था। उन्होंने उसकी शादी 12 नवंबर, 2024 को एक 30 साल के शख्स से तय कर दी। उनके लिए यह बोझ उतारने का रास्ता था, लेकिन उन्हें जरा भी अहसास नहीं था कि 15 साल की उम्र शादी का जाल बुनने की नहीं, सपने संजोने और पढ़ाई की राह पर चलने की होती है।
आशा ने इस अन्याय को चुपचाप सहने की बजाय हिम्मत दिखाई। उसने ठान लिया कि वह अपने बचपन को बाल विवाह की भेंट नहीं चढ़ने देगी। उसने अपनी स्कूल टीचर को सारी बात बताई, जो न सिर्फ एक शिक्षिका थीं, बल्कि बच्चों के अधिकारों की सच्ची पहरेदार भी। टीचर को पता था कि कम उम्र में शादी आशा की सेहत, शिक्षा और सपनों को कुचल देगी। उन्होंने तुरंत कदम उठाया और जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) के सहयोगी संगठन सोशल एंड डेवलपमेंट रिसर्च एक्शन ग्रुप (एसएडीआरएजी) से संपर्क किया। लेकिन डर भी था—उन्हें अपनी पहचान छिपाने की गुहार लगानी पड़ी, क्योंकि गाँव का माहौल उनके खिलाफ जा सकता था।
एसएडीआरएजी की कम्युनिटी सोशल वर्कर मुस्कान शुक्ला ने बताया कि टीचर की सूचना ने आशा को बचाने की मुहिम शुरू की। मुस्कान कहती हैं, “यह आशा की हिम्मत और हमारी टीम की एकजुट कोशिश का नतीजा था कि हम बाल विवाह को रोक पाए।” वह आगे जोड़ती हैं कि आज भी गरीबी और जागरूकता की कमी के चलते हजारों बेटियाँ इस कुरीति का शिकार बन रही हैं। ऐसे में हर किसी की जिम्मेदारी है कि अपने आसपास नजर रखें और बच्चों के हक के लिए आवाज उठाएँ।
एसएडीआरएजी की टीम ने बिना वक्त गँवाए आशा के घर का रुख किया। परिवार को बाल विवाह के कानूनी और सामाजिक नुकसानों से अवगत कराया गया। उन्हें बताया गया कि अगर शादी हुई, तो कानून सख्त कार्रवाई करेगा। साथ ही, आशा की पढ़ाई, सेहत और अधिकारों की अहमियत समझाई गई। लंबी बातचीत और समझाइश के बाद मौसा-मौसी मान गए। उन्होंने शपथ पत्र पर हस्ताक्षर कर वादा किया कि आशा की शादी 18 साल से पहले नहीं होगी।
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) इस जीत के पीछे की बड़ी ताकत है। 250 से ज्यादा एनजीओ के साथ मिलकर यह संगठन 416 जिलों में बच्चों के हकों के लिए लड़ रहा है। उत्तर प्रदेश के 40 जिलों में राज्य सरकार और प्रशासन के साथ मिलकर यह बाल विवाह के खिलाफ जंग छेड़े हुए है। अब तक जेआरसी ने 2,50,000 से ज्यादा बाल विवाहों को रुकवाया है—एक ऐसा आँकड़ा जो उम्मीद जगाता है।
आशा की कहानी सिर्फ एक बच्ची की जीत नहीं, बल्कि हिम्मत, जागरूकता और सामूहिक प्रयासों का प्रतीक है। यह साबित करती है कि अगर एक टीचर, एक बच्ची और एक संगठन मिलकर कदम उठाएँ, तो समाज की गहरी जड़ों में बसी बुराइयों को भी उखाड़ा जा सकता है। आशा आज अपने सपनों की उड़ान भरने को तैयार है, और उसकी कहानी हर उस बेटी के लिए प्रेरणा है, जो अपने हक की लड़ाई लड़ना चाहती है।