हसमुख उवाच
संविधान इन दिनों परेशानी में है क्योंकि देश के संविधान की हालत उस सुंदर युवती के जैसी हो गई हैं जिसके खैरख्वाह तो बहुत होते हैं पर सच्चा प्यार करने वाला कोई नहीं होता, हर कोई आज संविधान की दुहाई तो देता है परंतु संविधान को न तो जानता है और न मानता है, सरकार कानून बनाती है तो उसे मानने को कुछ लोग तैयार नहीं होते, जब कहा जाता है कि यह कानून है, तो कहते हैं कि _’होगा कानून, हम इसे नही मानते ‘!और यदि पूछा जाए कि -‘भयी,क्यों नहीं मानते?’तो कहा जाता है कि -‘देश संविधान से चलता है ‘
भारत में विडंबना यह है कि अब कोई आजादी चाहता है, जैसे उसे पिंजरे में बुलबुल की तरह बंद कर लिया गया है और सरकार सैय्याद की तरह मुस्करा रही है, देश को तोड़कर अपना एक अलग देश बना लेने वाले इस देश में बस गये और बात बात पर कहते हैं कि-‘देश संविधान से चलता है’
रही बात संविधान की, तो देखा गया है कि जिस मामले में जेल होती है, उसी मामले में बेल भी हो जाती है, कर के गया दाढ़ी वाला, पकड़ा गया मूंछ वाला, यह भी संविधान के तहत हो जाता है! एक सज्जन राम-लखन हत्या के झूठे मुकदमे में फंस गए, अड़तालिस साल में पता चला कि वो निर्दोष थे,एस सी एस टी एक्ट में एक सज्जन क्या फंसे पूरे उन्नीस साल में पता चला कि उनका कोई कुसूर नहीं था!
यह सब देखकर एक कल्पना उभरती हैं कि अगर देश का संविधान साकार रूप में किसी मनुष्य की तरह बात कर रहा होता तो मिल ने पर क्या कहता?शायद वह सबसे ज्यादा राजनीतिज्ञों पर अपनी खुन्नस निकाल रहा होता जो एक आंतकवादी की जमानत के लिए रात के वक्त संविधान को सोते से जगाने के लिए पंहुच जाते हैं, क्योंकि दिन भर का थका संविधान रात को सोया रहता है, वैसे भी आजादी के बाद सौ से ज्यादा बार उसका पोस्टमाटर्म जैसा राजनीतिज्ञों ने किया जिसकी वजह से कयी रोग जिसके भीतर प्रवेश कर गये हैं जिनका आज उपचार करने की जरूरत पड़ रही है, धारा तीन सौ सत्तर ऐसा ही रोग था जिसका उपचार करने से संविधान को थोड़ा चैन पडा, हलाला भी ऐसा रोग था,लेकिन जब सीएए, समान नागरिक संहिता, एन आर सी का इंजेकशन लगाने की जरूरत पड़ी तो फर्जी अल्पसंखयक चिल्लाने लगे ” हम इंजेक्शन नहीं लगवाएंगे, बहुत दर्द होता है। “उनसे पूछा गया कि इंजेक्शन क्यों नहीं लगवाओगे?” तो कहने लगे “क्योंकि देश संविधान से चलता है “।
संविधान का तात्पर्य है कि सबके लिए समान कानून हो, लेकिन इस देश की फर्जी अल्पसंखयक नाम की बीमारी अकुलाने लगती है “नहीं. .नहीं यह नहीं होना चाहिए “
“क्यों नहीं होना चाहिए? ” तो कहा जाता है कि _”क्योंकि देश संविधान से चलता है “
कुछ समय से एक बात और देखने में आने लगी है कि चुनी हुई सरकार का विरोध गालियों का रिवाज सा बन गया है, विरोधी गण दिमाग के सारे घोड़ों को दौड़ा रहे हैँ, माथे भिड़ा भिड़ा कर सोच रहे है कि मोदी को कैसे हटाया जाए? इस दिशा में मोदी के साथ साथ जनता को भी कोसा गया और गाली दी कि मोदी को वोट देने वाले राक्षस हैँ, ,यानि अपना वोट देने वाला यदि मोदी को वोट देता है तो वह राक्षस है, और यह सब कहने वाले स्वर्ग से पधारे हुए देवता हैं, अब इन देवताओं के दिमाग में यह रोशन खयाल आया कि ‘भारत जोड़ो यात्रा ‘निकाली जाए, निकाली गई, बताया गया कि इस जोड़ो यात्रा में भैस, कुत्ते और गधे भी शामिल हो गये थे, पर यह नहीं बताया गया कि उसमे देवता कौन कौन थे? फिर भी कोई नतीजा नहीं निकला!
अगली बार सनक उठी कि संविधान पर खतरा बता कर मोदी को वोट देने वाले राक्षसों को समाप्त किया जाए, देखा गया कि एक लाल जिल्द की किताब नुमा चीज को लहराते हुए कहा जाने लगा ‘संविधान खतरे में है। ‘यह स्वांग भी जब फ्लाप हो गया ‘तो पूछा गया कि “यह सब आप क्यों कर रहे थे? तो कहा गया ” क्योंकि देश संविधान से चलता है “
देश की संसद कायदे कानून और संविधान से चलती है और जब संसद चल रही होती है तो संविधान जागा हुआ रहता है, अगर पूछा जाए कि “आप संसद में सोए हुए क्यों थे? तो कहा जाएगा कि ” क्योंकि देश संविधान से चलता है “वो सोए रहें तो भी संवैधानिक, और प्रधानमंत्री जागा रहे तो ‘संविधान खतरे में ‘
इन्हीं कारणो से आज देश का संविधान बड़ी परेशानी में है,बंगलादेश की लुंगी मंडली ,रोहिंग्या अवैध रूप से आकर देश में बसी तो उसे निकाला जाने लगा, बस झट से देश का एक नामी गिरामी वकील बीच में आ कर मुकदमा लड़ने को तैयार हो गया, ऐसे लड़ने आ गया जैसे सारे लुंगी वाले उसके रिशतेदार हों, मतलब उसका यही हैं कि देश संविधान से चलता है, घुसपैठियों को देश से बाहर निकालना ही संविधान के खिलाफ बताने से संविधान अपना माथा पीट लेता है, इसी लिए संविधान आजकल परेशानी में है!
समाप्त