कोलकाता, 2 अप्रैल 2025, बुधवार। पश्चिम बंगाल में इस बार रामनवमी का त्योहार सिर्फ भक्ति और उत्साह का प्रतीक नहीं रह गया है, बल्कि यह सियासी जंग का मैदान बन चुका है। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और अन्य हिंदू संगठनों ने 6 अप्रैल को शुरू होने वाले इस पर्व पर राज्य भर में करीब 2000 रैलियां निकालने का ऐलान किया है। लेकिन बीते सालों में रामनवमी के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा की यादें अभी भी ताजा हैं, जिसने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चिंताएं बढ़ा दी हैं। इस बार शांति बनाए रखने के लिए बंगाल पुलिस ने कमर कस ली है। 9 अप्रैल तक सभी पुलिसकर्मियों की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं और संवेदनशील इलाकों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जा रहे हैं।
पुलिस की चौकसी, हर कदम पर नजर
पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक (कानून एवं व्यवस्था) के हस्ताक्षर से जारी एक आदेश में साफ कहा गया है कि केवल बेहद जरूरी हालात में ही छुट्टी मंजूर होगी। इसका मकसद है कि रामनवमी के दौरान भारी संख्या में पुलिसकर्मी तैनात रहें, ताकि जुलूसों पर निगरानी, गश्त और किसी भी अप्रिय घटना पर तुरंत कार्रवाई की जा सके। संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त बल, बैरिकेड्स और सीसीटीवी कैमरों का जाल बिछाया जा रहा है। बीते सालों में हावड़ा, हुगली और मुर्शिदाबाद जैसे जिलों में जुलूसों के दौरान पथराव और झड़पों की घटनाएं सामने आई थीं, जिनमें संपत्ति को नुकसान और लोग घायल हुए थे। इस बार पुलिस कोई जोखिम मोल लेने के मूड में नहीं है।
बांग्लादेश की हिंसा और बंगाल की सियासत
पड़ोसी देश बांग्लादेश में हिंदुओं पर हालिया हमलों और 2026 के विधानसभा चुनावों ने इस बार रामनवमी को सियासी रंग दे दिया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इसे हिंदू वोटों को एकजुट करने के सुनहरे मौके के तौर पर देख रही है। विहिप और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जैसे संगठन राज्य के हर ब्लॉक में तीन करोड़ से ज्यादा लोगों को जोड़ने और सप्ताह भर तक रैलियां निकालने की तैयारी में हैं। भाजपा नेताओं का कहना है कि यह जुलूस बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की कथित “तुष्टिकरण नीतियों” के खिलाफ एक जवाब है।
राज्य भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा, “बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले हमें सचेत कर रहे हैं। अगर हम अब नहीं जागे, तो टीएमसी की नीतियों के चलते बंगाल के हिंदुओं का भी वही हाल हो सकता है।” वहीं, विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने दावा किया कि पिछले साल 50 लाख लोगों ने रामनवमी में हिस्सा लिया था और इस बार एक करोड़ से ज्यादा लोग सड़कों पर होंगे। उनका नारा है- “2026 में बंगाल में हिंदू सरकार बनेगी।”
टीएमसी का पलटवार
टीएमसी ने भाजपा पर धर्म को सियासी हथियार बनाने का आरोप लगाया है। पार्टी प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा, “लोग उन नेताओं को कभी स्वीकार नहीं करेंगे जो भगवान के नाम पर अपनी दुकान चलाते हैं।” ममता बनर्जी की पार्टी इसे शांति भंग करने की साजिश करार दे रही है, जबकि भाजपा इसे हिंदू अस्मिता की लड़ाई बता रही है।
हिंसा का पुराना इतिहास
पश्चिम बंगाल में रामनवमी के जुलूसों के दौरान तनाव कोई नई बात नहीं है। 2018 में आसनसोल में भड़की हिंसा में कई लोगों की जान गई थी। 2019, 2022 और 2023 में भी मुर्शिदाबाद, मालदा और हावड़ा जैसे इलाकों में सांप्रदायिक झड़पें हुई थीं। बांग्लादेश में पिछले साल अगस्त से मंदिरों और हिंदू घरों पर हमलों ने इस बार के प्रदर्शनों को और संवेदनशील बना दिया है। भाजपा जहां इसे मुद्दा बना रही है, वहीं टीएमसी इसे नजरअंदाज करने का आरोप झेल रही है।
उत्सव या उलझन?
इस बार रामनवमी का माहौल भक्ति, राजनीति और तनाव का अनोखा संगम बन गया है। एक तरफ भगवान राम के भक्त उत्साह में हैं, तो दूसरी तरफ सियासी दांव-पेंच और सुरक्षा की चुनौतियां माहौल को गर्माए हुए हैं। क्या यह पर्व शांति से गुजरेगा या फिर इतिहास की पुनरावृत्ति होगी? यह तो वक्त ही बताएगा।