पंकज शर्मा
एक परम मित्र हैं, जो एक समय कहा करते थे। वो कहते थे मोदी भगवान का अवतार हैं। वही आज सबसे अधिक पानी पी पी कर कोसते हैं। दूसरी ओर जब वे मोदी को पूज रहे थे, मैं मोदी को क्रिटिसाइज करने के कारण गालियां सुन रहा था। आज जब वे मोदी के लिए खराब से खराब गालियां निकाल रहे हैं, मैं मोदी के साथ पूर्ण समर्थन में खड़ा हूं।
मेरी और उनकी निर्णय प्रक्रिया में क्या अंतर है? क्योंकि पहले उनका समर्थन शुद्ध भावना पर आधारित था, आज उनका विरोध भी शुद्ध भावना पर आधारित है. मेरे लिए पहले मोदी का विरोध शुद्धतः तार्किकता और रेशनेलिटी पर आधारित था, आज मोदी का समर्थन भी तार्किकता पर आधारित है.
जब मैं मोदी का विरोध कर रहा था, तो वह डिसीजन स्पेसिफिक था, ना कि पर्सन स्पेसिफिक. मैं मोदी से कुछ विशेष निर्णयों की अपेक्षा करता था, और आशा करता था कि यदि वे मांगें अधिक मुखरता से उठाई गई तो मानी जा सकती हैं. उनमें से कई मांगें मानी भी गईं, कई अपेक्षाएं पूरी भी हुईं. मोदी के शासन का दूसरा कार्य काल अनेक हिन्दू हितों के कार्यों पर केंद्रित रहा जो पहले कार्यकाल में हाशिए पर रहे थे. लेकिन मैंने ऐसी किसी मांग के लिए मोदी का विरोध नहीं किया जो उस समय नहीं माने जा सकते थे.
इस तीसरे कार्यकाल में मोदी को अपेक्षित बहुमत नहीं आया. और इसके लिए उनका कार्यकाल या प्रधानमंत्री के तौर पर लिए गए कोई निर्णय दोषी नहीं थे. जो भी कारण थे वे स्थानीय राजनीति के परिणामस्वरूप थे, और सर्वाधिक जातीय समीकरणों के परिणाम थे. फरवरी और मार्च तक जो जनमानस मोदी को 350 से अधिक सीटें देने को तत्पर था, वह मई तक सरक कर 240 पर ले आया. पर जो भी कारण हों, आज मोदी की राजनीतिक शक्ति पिछले कार्यकाल से कम है. लेकिन सोशल मीडिया पर अपेक्षाएं पहले से कई गुना अधिक व्यक्त हो रही हैं.
यदि हममें तार्किक रूप से सोचने की क्षमता होती तो समझना कठिन नहीं था कि अभी मोदी से और अधिक अपेक्षाएं रखने का नहीं, बिना शर्त समर्थन देने का समय है. मोदी आज भी हमारे सबसे अच्छे और वायबल ऑप्शन हैं… और उनका विरोध करने से कुछ नहीं मिलना.