अफजल गुरु का भाई भी आजमाएगा किस्मत!
लोकसभा चुनाव में पंजाब की दो सीटों से अमृतपाल सिंह समेत दो अलगाववादी सांसद चुने गए थे। इस ट्रेंड को लेकर चिंता भी जताई गई कि आखिर क्यों अलगाववादियों को चुनाव में जीत मिल गई, जबकि कांग्रेस, आप, भाजपा और अकाली दल समेत कई बड़ी पार्टियां मैदान में थीं। अब पंजाब की तर्ज पर जम्मू-कश्मीर में कई पूर्व आतंकी और अलगाववादी भी चुनावी समर में उतरने जा रहे हैं। इन लोगों ने सोमवार को एकजुट होकर एक नई पार्टी तहरीक-ए-अवाम के गठन का ऐलान किया। तहरीक-ए-अवाम से जुड़ने वाले प्रमुख लोगों में 2001 के संसद हमले के दोषी अफजल गुरु का भाई एजाज अहमद गुरु भी शामिल है। वह भी चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में जुटा हुआ है। साल 2013 में अफजल गुरु को फांसी दे दी गई।
अफजल गुरु के भाई के अलावा सर्जन बरकती, सयार अहमद समेत कई ऐसे अलगाववादी नेता चुनाव में उतर सकते हैं, जो अब तक वोटिंग का बहिष्कार करने की बात करते थे। घाटी में आजादी चाचा के नाम से मशहूर सर्जन बरकती जेल में हैं। घाटी में आतंकियों के एनकाउंटर खास तौर से वुरहान वानी की मौत के बाद पत्थरबाजी की घटनाओं को भड़काने के आरेाप में उसे जेल में डाला गया है। सर्जन बरकती के शोपियां से चुनाव लड़ने की संभावना है। सर्जन जेल में हैं इसलिए उनकी बेटी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव का पर्चा दाखिल करेगी। वहीं, प्रतिबंधित जमात ए इस्लामी के पूर्व वरिष्ठ सदस्य सयार अहमद रेशी ने कुलगाम विधानसभा क्षेत्र से अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है। इस संगठन को अलगाववाद को हवा देने वाला बताया जाता है।

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही चुनावी हलचल तेज हो गई है। जम्मू कश्मीर विधानसभा के चुनावी अखाड़े में राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय पार्टियां तो उतर ही गई हैं। अब पूर्व आतंकवादी, अलगाववादी और उनके रिश्तेदार भी चुनाव लड़ेंगे। जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों का चुनाव लड़ना बड़ी घटना के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि ये अब तक चुनावों का बहिष्कार और लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती देते आए हैं। लेकिन इनका चुनाव लड़ना कश्मीर में बदलते राजनीतिक परिदृश्य को दर्शा रहा है।
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव के दौरान अलगाववादी राशिद इंजीनियर को कामयाबी मिली थी। राशिद इंजीनियर ने पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कान्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला को पटखनी दी थी। इसी सफलता को देखते हुए तहरीक-ए-अवाम का गठन किया गया है। तहरीक-ए-अवाम से जुड़ने वाले प्रमुख लोगों का भी कहना है कि राशिद इंजीनियर की इस कामयाबी के बाद ही उन्होंने नई पार्टी का गठन करके विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
बता दें, दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद होने के कारण राशिद इंजीनियर के चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी उसके बेटों ने संभाली थी और राशिद इंजीनियर ने 4.7 लाख वोटों से जीत हासिल की थी। उल्लेखनीय बात यह है कि उन्होंने उमर अब्दुल्ला जैसे ताकतवर उम्मीदवार को इतनी बड़ी मार्जिन से हराया था। राशिद इंजीनियर की इस जीत से अलगाववादियों का हौसला बढ़ा है और उनका मानना है कि घाटी में मतदाताओं का एक ऐसा वर्ग है जो मुख्य धारा के राजनीतिक दलों की जगह अलगाववादियों को समर्थन दे सकता है।
जम्मू कश्मीर में 90 विधानसभा सीटें हैं। इनमें तीन चरणों में चुनाव होगा। पहले चरण का मतदान 28 सितंबर को होना है, जबकि दूसरे चरण के लिए वोट 25 सितंबर को पड़ेंगे। यहां तीसरे चरण का मतदान एक अक्टूबर को होगा। चुनाव परिणाम चार अक्टूबर को आएगा।