लखनऊ, 24 जून 2025: समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पार्टी से निष्कासित तीन विधायकों—अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह और मनोज कुमार पांडेय—पर तंज कसते हुए बड़ा बयान दिया है। मंगलवार को लखनऊ में एक प्रेस वार्ता के दौरान अखिलेश ने कहा, “इनका टेक्निकल इश्यू खत्म हो गया है, अब ये मंत्री बन जाएं।” उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राज्यसभा सांसद संजय सेठ पर भी निशाना साधा, बिना नाम लिए तंज कसते हुए कहा, “वो लोग जो खुद को बड़ा कारोबारी समझते हैं, असल में राजनीति की बोली लगाते हैं।”
सपा ने सोमवार को गोसाईगंज से विधायक अभय सिंह, गौरीगंज से विधायक राकेश प्रताप सिंह और ऊंचाहार से विधायक मनोज कुमार पांडेय को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में निष्कासित कर दिया था। पार्टी ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल पर पोस्ट करते हुए कहा कि इन विधायकों को ‘हृदय परिवर्तन’ के लिए दी गई ‘अनुग्रह अवधि’ समाप्त हो चुकी है। सपा ने आरोप लगाया कि ये विधायक बीजेपी के साथ मिलकर सांप्रदायिक और विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा दे रहे थे, जो पार्टी की मूल विचारधारा के खिलाफ है।
सूत्रों के मुताबिक, इन तीनों विधायकों ने 2024 के राज्यसभा चुनाव में सपा के बजाय बीजेपी प्रत्याशी संजय सेठ को वोट दिया था, जिसके कारण सपा के तीसरे उम्मीदवार आलोक रंजन को हार का सामना करना पड़ा। इस घटना के बाद से ही ये विधायक बीजेपी के करीब नजर आ रहे थे और सपा नेतृत्व के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे। अखिलेश ने प्रेस वार्ता में व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, “हमने इन्हें पहले ही माफ कर दिया था, लेकिन अब टेक्निकल इश्यू खत्म हो गया है। बीजेपी इन्हें मंत्री बना दे, ताकि बाकी बागियों का रास्ता भी साफ हो।”
अखिलेश ने यह भी स्पष्ट किया कि सात बागी विधायकों में से केवल तीन पर कार्रवाई की गई है, जबकि बाकी चार—कालपी के विनोद चतुर्वेदी, चायल की पूजा पाल, जलालाबाद के राकेश पांडेय और बिसौली के आशुतोष मौर्य—पर अभी कोई एक्शन नहीं लिया गया है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इन चार विधायकों ने सपा नेतृत्व के खिलाफ खुली बयानबाजी से परहेज किया और कुछ ने पार्टी के साथ गिले-शिकवे दूर करने की कोशिश की है।
सपा की इस कार्रवाई को पार्टी की ‘PDA’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) रणनीति को मजबूत करने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश ने इस कदम से न केवल पार्टी में अनुशासन का संदेश दिया है, बल्कि बीजेपी पर भी दबाव बनाया है। दूसरी ओर, बीजेपी नेताओं ने इस कार्रवाई पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सपा आंतरिक कलह से जूझ रही है और यह कदम उनकी कमजोरी को दर्शाता है।
यह कार्रवाई उत्तर प्रदेश की सियासत में एक नए विवाद को जन्म दे सकती है, क्योंकि निष्कासित विधायकों के बीजेपी में शामिल होने की अटकलें तेज हो गई हैं। अब सभी की नजर इस बात पर है कि बीजेपी इन विधायकों को अपनी पार्टी में कितनी अहमियत देती है और क्या वाकई इन्हें ‘मंत्री’ बनाया जाएगा, जैसा कि अखिलेश ने तंज में कहा।