नई दिल्ली, 16 दिसंबर 2024, सोमवार। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया है कि मस्जिद में जय श्री राम का नारा लगाना अपराध कैसे हो गया। यह सवाल कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए उठाया गया, जिसमें मस्जिद के अंदर यह नारा लगाने वाले दो लोगों के खिलाफ दर्ज केस को खत्म कर दिया गया था। मस्जिद के केयरटेकर ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की थी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करने से इनकार किया और याचिका की कॉपी राज्य सरकार को देने को कहा है। अगली सुनवाई जनवरी में होगी।
ये है पूरा मामला
कर्नाटक हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इस मामले में मस्जिद में जय श्री राम का नारा लगाने वाले दो लोगों के खिलाफ दर्ज केस को हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस संदीप मेहता ने सवाल किया कि अगर वो लोग कोई ‘खास नारा’ भी लगा रहे थे, तो ये अपराध कैसे हो सकता है?
वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने जवाब दिया कि किसी दूसरे के धार्मिक स्थान में घुसकर धार्मिक नारा लगाने के पीछे उनकी मंशा सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने की थी। उन्होंने यह भी बताया कि CCTV फुटेज मिले हैं और पुलिस ने आरोपियों की पहचान कर उनकी गिरफ्तारी की है।
जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने पूछा कि क्या आरोपियों की पहचान हो गई है? क्या सिर्फ मस्जिद के पास उनकी मौजूदगी से साबित हो जाता है कि उन्होंने नारे लगाए। क्या आप असल आरोपियों की शिनाख्त कर पाए हैं? इस पर, कामत ने जवाब दिया कि पुलिस ने आरोपियों की पहचान कर उनकी गिरफ्तारी की है। उन्होंने साफ किया कि वो इस मामले में शिकायतकर्ता (मस्जिद के केअरटेकर) की ओर से पेश हो रहे हैं। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में नोटिस जारी करने से इनकार किया और याचिका की कॉपी राज्य सरकार को देने को कहा है। अगली सुनवाई जनवरी में होगी।
मस्जिद में ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने वालों को हाई कोर्ट से राहत, सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका
खबरों के मुताबिक, कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले के ऐथुर गांव में बदरिया जुम्मा मस्जिद में दो लोगों ने ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए और मुस्लिम समुदाय के लोगों को धमकी दी। पुलिस ने उन पर IPC की धारा 295 ए, 447 और 506 समेत कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया। लेकिन कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने उन्हें राहत देते हुए मामला रद्द कर दिया।