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Wednesday, July 23, 2025

सुप्रीम कोर्ट का बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन पर बड़ा निर्देश: आधार, वोटर आईडी, राशन कार्ड को मान्य करने की सलाह

नई दिल्ली, 10 जुलाई 2025: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान को लेकर चुनाव आयोग को महत्वपूर्ण सुझाव दिया। कोर्ट ने आग्रह किया कि मतदाता सूची तैयार करने के लिए आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को वैध दस्तावेजों के रूप में शामिल करने पर विचार किया जाए। यह टिप्पणी जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें बिहार में मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया और समय पर सवाल उठाए गए हैं।

कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई के लिए निर्धारित की है और चुनाव आयोग को 21 जुलाई तक अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। हालांकि, अभी कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं किया गया है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चुनाव आयोग के उस फैसले पर सवाल उठाए, जिसमें विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मतदाता सूची में संशोधन शुरू किया गया। जस्टिस धूलिया ने टिप्पणी करते हुए कहा, “चुनाव इतने नजदीक हैं, अब मतदाता सूची में संशोधन और नागरिकता की जांच का समय ठीक नहीं है। यह काम पहले शुरू करना चाहिए था।”

चुनाव आयोग ने कोर्ट में अपनी दलील में कहा कि मतदाता सूची को सटीक और अद्यतन रखना उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार कार्ड नागरिकता का वैध प्रमाण नहीं है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत केवल भारतीय नागरिक ही मतदान के लिए पात्र हैं। आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील द्विवेदी ने जोर देकर कहा, “अगर चुनाव आयोग को मतदाता सूची संशोधन का अधिकार नहीं है, तो फिर यह जिम्मेदारी किसकी है?”

इस मामले में 10 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें गैर-सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ के साथ-साथ राजद सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल, राकांपा (सपा) की सुप्रिया सुले, भाकपा के डी राजा, समाजवादी पार्टी के हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (यूबीटी) के अरविंद सावंत, झामुमो के सरफराज अहमद और भाकपा (माले) के दीपांकर भट्टाचार्य शामिल हैं। ये सभी याचिकाकर्ता चुनाव आयोग के आदेश को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मतदाता सूची का संशोधन चुनाव आयोग का वैधानिक अधिकार है, जैसा कि आखिरी बार बिहार में वर्ष 2003 में किया गया था। अब सभी की निगाहें 28 जुलाई की सुनवाई पर टिकी हैं, जब इस मामले में और स्पष्टता मिलने की उम्मीद है।

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