नई दिल्ली, 31 जुलाई 2025: सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पुलिस जांच के लिए व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से समन भेजने की अनुमति मांगी गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पुलिस को जांच के लिए समन केवल भौतिक रूप में ही भेजना होगा। यह महत्वपूर्ण आदेश 16 जुलाई को पारित किया गया था, जिसे बुधवार 30 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया।
न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 35 के तहत इलेक्ट्रॉनिक तरीके से समन भेजना वैध नहीं है। पीठ ने जोर देकर कहा कि कानून निर्माताओं की मंशा स्पष्ट थी कि समन को भौतिक रूप में ही भेजा जाए, ताकि व्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई अनुचित प्रभाव न पड़े।
हरियाणा सरकार ने दी थी दलील
हरियाणा सरकार ने तर्क दिया था कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के तहत अदालती समन और गवाहों को बुलाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की अनुमति है, इसलिए इसे जांच के लिए समन पर भी लागू करना चाहिए। सरकार का कहना था कि इसका उद्देश्य केवल जांच में भागीदारी सुनिश्चित करना है, न कि गिरफ्तारी। हालांकि, कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि BNSS की धारा 35 के तहत समन का पालन न करने से व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर तत्काल प्रभाव पड़ सकता है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त मूल अधिकार का उल्लंघन होगा।
कोर्ट ने क्यों ठुकराई याचिका?
पीठ ने सतिन्दर कुमार अंतिल बनाम सीबीआई मामले में 21 जनवरी के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि CrPC की धारा 41A के तहत जारी नोटिस का उल्लंघन गंभीर परिणाम भुगत सकता है, खासकर जब जांच में शामिल होना अनिवार्य हो। कोर्ट ने BNSS की धारा 64(2) और 71 का जिक्र करते हुए स्पष्ट किया कि इन प्रावधानों में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की अनुमति है, लेकिन वे जांच प्रक्रिया से अलग हैं। धारा 35 के तहत समन का उल्लंघन व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीधे प्रभावित करता है, इसलिए इसे भौतिक रूप में ही भेजा जाना चाहिए।
संविधान के मूल अधिकारों की रक्षा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 21 पर जोर देते हुए कहा कि व्यक्ति के स्वतंत्र जीवन और सुरक्षा के अधिकार की रक्षा सर्वोपरि है। भौतिक समन यह सुनिश्चित करता है कि नोटिस की प्रक्रिया पारदर्शी और कानून के अनुरूप हो, ताकि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनुचित असर न पड़े। यह फैसला जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।