नई दिल्ली, 22 मई 2025, गुरुवार। भारत की सर्वोच्च अदालत ने एक बार फिर अपनी ताकत का अहसास कराते हुए मध्य प्रदेश सरकार के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें IAS अधिकारियों को भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारियों की गोपनीय मूल्यांकन रिपोर्ट (ACR) लिखने की छूट दी गई थी। यह फैसला न केवल प्रशासनिक नियमों की पवित्रता को बनाए रखता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि विशेषज्ञता का सम्मान हो और नियमों का पालन हो। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपने 2000 के फैसले का उल्लंघन करार देते हुए सख्त चेतावनी दी: “ऐसी कोशिश दोबारा हुई तो यह कोर्ट की अवमानना होगी, और सजा भुगतनी पड़ेगी।”
क्या था मामला?
मध्य प्रदेश सरकार ने 29 जून 2024 को एक आदेश जारी किया, जिसमें IAS अधिकारियों को IFS अधिकारियों की ACR लिखने का अधिकार दिया गया। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के 2000 के उस फैसले के खिलाफ था, जिसमें स्पष्ट कहा गया था कि केवल वन विभाग के वरिष्ठ IFS अधिकारी ही अपने अधीनस्थ IFS अधिकारियों की गोपनीय रिपोर्ट लिख सकते हैं। इस नियम का अपवाद केवल प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (PCCF) के लिए था।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस मामले की सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश सरकार के रवैये पर कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने कहा, “राज्य सरकार ने बिना किसी ठोस आधार या स्पष्टीकरण के हमारे पुराने आदेश की अनदेखी की। यह न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि कोर्ट की अवमानना भी है।”
सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार के आदेश को तत्काल रद्द कर दिया और साफ निर्देश दिया कि IFS अधिकारियों की ACR केवल वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा ही लिखी जाएगी। कोर्ट ने सरकार को एक महीने के भीतर नियमों में संशोधन करने और पुराने फैसले का पूरी तरह पालन करने का आदेश दिया। साथ ही, यह चेतावनी भी दी कि भविष्य में इस तरह की मनमानी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
क्यों है यह फैसला अहम?
यह फैसला न केवल IFS और IAS अधिकारियों के बीच स्पष्टता लाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि विशेषज्ञ सेवाओं का मूल्यांकन केवल उसी क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा हो। वन सेवा के अधिकारियों की ACR में उनकी तकनीकी विशेषज्ञता, पर्यावरण संरक्षण और वन प्रबंधन जैसे जटिल पहलुओं का मूल्यांकन होता है, जिसके लिए गैर-वन सेवा अधिकारियों के पास पर्याप्त विशेषज्ञता नहीं हो सकती। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम प्रशासनिक निष्पक्षता और पारदर्शिता को बढ़ावा देता है।
मध्य प्रदेश सरकार को अब एक महीने के भीतर अपने नियमों में बदलाव करना होगा। यह फैसला अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बनेगा, ताकि वे अपने प्रशासनिक नियमों को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप रखें। साथ ही, यह मामला यह भी दर्शाता है कि सुप्रीम कोर्ट प्रशासनिक मनमानी पर नकेल कसने के लिए हमेशा तैयार है।