सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि नाबालिग के यौन उत्पीड़न के आरोपी को सजा देने के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्क (स्किन टू स्किन टच) होना जरूरी है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि पॉक्सो एक्ट के तहत यौन अपराधियों को दोषी ठहराने में सबसे महत्वपूर्ण बात उसका यौन शोषण का इरादा है, ना कि त्वचा से त्वचा का मिलना।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून का उद्देश्य अपराधी को कानून के जाल से बचने की अनुमति देना नहीं हो सकता है। पोक्सो की धारा 7 के तहत ‘स्पर्श’ और ‘शारीरिक संपर्क’ अभिव्यक्ति के अर्थ को “त्वचा से त्वचा संपर्क” तक सीमित करना ना केवल संकीर्ण और कागजी व्याख्या होगी, बल्कि प्रावधान की बेतुकी व्याख्या भी होगी।
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने इस साल जनवरी में बच्ची से यौन उत्पीड़न के एक मामले में आरोपी को यह कहते हुए छोड़ दिया था कि नाबालिग से स्किन टू स्किन संपर्क के बिना छूने के लिए पॉक्सो एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती है। न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि किसी हरकत को यौन हमला माने जाने के लिए ‘गंदी मंशा से त्वचा से त्वचा (स्किन टू स्किन) का संपर्क होना’ जरूरी है।
हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से फैसला रद्द करने की गुहार लगाई थी। वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग की तरफ से भी याचिका दायर कर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। 27 जनवरी को तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने हाईकोर्ट के इस विवादित आदेश के अमल पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई करने के बाद 30 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।