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Friday, April 25, 2025

बीएचयू में छात्रा की जीत: आठ दिन के संघर्ष ने दिलाया हक

वाराणसी, 25 अप्रैल 2025, शुक्रवार। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के हिन्दी विभाग में शोध प्रवेश के लिए एक छात्रा की जुझारू लड़ाई आखिरकार रंग लाई। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) कोटे के तहत प्रवेश के लिए सभी दस्तावेज सही होने के बावजूद, विभाग पर उसे टालमटोल करने का आरोप था। लेकिन इस छात्रा ने हार नहीं मानी। आठ दिनों तक धरने पर डटी रही, और आखिरकार बीएचयू प्रशासन को उसके सामने झुकना पड़ा। छात्रा को प्रवेश लिंक मिलते ही उसकी आँखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। साथी विद्यार्थियों ने मिठाइयाँ बाँटकर इस जीत का जश्न मनाया।

छात्रा की इस जीत की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं है। बीएचयू प्रशासन ने बताया कि मामले की जाँच के लिए गठित कमेटी की सिफारिश पर प्रवेश समन्वय बोर्ड ने छात्रा को प्रवेश लिंक जारी किया। लेकिन इस लिंक तक पहुँचने का रास्ता आसान नहीं था। छात्रा ने बताया कि प्रतीक्षा सूची में वह पहले स्थान पर थी, फिर भी उसके ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र को लेकर जानबूझकर अड़चनें डाली गईं। उसका आरोप था कि किसी ‘चहेते’ विद्यार्थी को प्रवेश देने के लिए उसके हक को दबाने की कोशिश की गई। लेकिन धरने की ताकत और साथी विद्यार्थियों, सपा, कांग्रेस, करणी सेना जैसे संगठनों के समर्थन ने उसे हिम्मत दी। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया और जिला प्रशासन से जवाब माँगा।

धरने के दौरान छात्रा को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। भीषण गर्मी और लू के कारण उसकी तबीयत भी बिगड़ गई, लेकिन उसका हौसला नहीं डगमगाया। जब प्रवेश लिंक मिला, तो धरने पर साथ देने वाले विद्यार्थियों ने मिठाइयाँ बाँटकर खुशी मनाई। उन्होंने कहा, “यह जीत सिर्फ एक छात्रा की नहीं, बल्कि हर उस मेधावी की है, जो अन्याय के खिलाफ आवाज उठाता है। उम्मीद है, अब विश्वविद्यालय ऐसी नाइंसाफी दोबारा नहीं करेगा।”

परीक्षा विभाग में धरना जारी

हालाँकि, बीएचयू में प्रवेश को लेकर विवाद यहीं खत्म नहीं हुआ। प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के दो छात्र अभी भी परीक्षा विभाग के सामने धरने पर हैं। वे पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया में ओबीसी अभ्यर्थियों को नियमानुसार प्रवेश देने की माँग कर रहे हैं। इन छात्रों का संघर्ष भी बीएचयू प्रशासन के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।

यह घटना न सिर्फ एक छात्रा की जीत की कहानी है, बल्कि यह भी दिखाती है कि हक के लिए आवाज उठाने की ताकत क्या कर सकती है। यह हर उस युवा के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को साकार करने के लिए लड़ने को तैयार है।

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