वाराणसी, 23 अप्रैल 2025, बुधवार। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) इन दिनों सुर्खियों में है, और इसका कारण है एक छात्रा का साहसिक धरना, जिसने न केवल विश्वविद्यालय प्रशासन को हिलाकर रख दिया, बल्कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तक की नजर इस पर पड़ गई। पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं के खिलाफ केंद्रीय कार्यालय के गेट पर सात दिनों से डटी छात्रा अर्चिता सिंह की तबीयत लू लगने से बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस घटना ने मामले को और गंभीर बना दिया है।
PMO की सख्ती, जिला प्रशासन हरकत में
छात्रा के धरने की गूंज दिल्ली तक पहुंची, और पीएमओ ने जिला प्रशासन से तत्काल रिपोर्ट मांगी। इसके बाद एडीएम सिटी ने छात्रा से मुलाकात की और जल्द ही पीएमओ को विस्तृत रिपोर्ट भेजने की बात कही। इस बीच, चंदौली के सपा सांसद वीरेंद्र सिंह और अजय राय ने भी धरने पर बैठे छात्रों से मुलाकात कर उनका समर्थन जताया। यह मामला अब सिर्फ विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में भी चर्चा का विषय बन गया है।
सात दिन, एक मांग: प्रवेश में पारदर्शिता
अर्चिता सिंह का आरोप है कि सभी प्रमाणपत्र सही होने के बावजूद उनका पीएचडी में प्रवेश बाधित किया जा रहा है। 15 दिन तक कुलपति, कुलसचिव, परीक्षा नियंता और हिन्दी विभाग के चक्कर काटने के बाद, हताश होकर उन्होंने धरना शुरू किया। उनकी मांग साफ है- प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता और नियमों का पालन। उनकी इस लड़ाई ने कई अन्य छात्रों को भी प्रेरित किया है, जो अपने हक के लिए आवाज उठा रहे हैं।
सोशल मीडिया पर अश्लील टिप्पणी, मुकदमा दर्ज
मामला तब और तूल पकड़ गया, जब धरने पर बैठी छात्रा के खिलाफ सोशल मीडिया पर अश्लील टिप्पणी की गई। लंका थाने में शिवांश सिंह की शिकायत पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया। यह टिप्पणी कथित तौर पर ब्राह्मण समाज के नाम से बने ट्विटर अकाउंट से की गई थी। पुलिस ने कार्रवाई शुरू कर दी है, जिससे इस मामले में नया मोड़ आ गया है।
ABVP ने भी भरी हुंकार
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने भी बीएचयू प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। संगठन ने महिला महाविद्यालय चौराहे पर प्रशासन का पुतला फूंका और आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय की गलत नीतियों ने परिसर को राजनीति का अड्डा बना दिया है। एबीवीपी ने मांग की कि हिन्दी विभाग में ईडब्ल्यूएस नियमों के तहत प्रवेश प्रक्रिया को ठीक किया जाए और प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग में ओबीसी छात्रों के साथ हो रही अनियमितताओं को दूर किया जाए।
प्रशासन पर बढ़ता दबाव
छात्रनेताओं का कहना है कि शोध प्रवेश प्रक्रिया में प्रशासनिक लापरवाही और विभागीय धांधली के कई मामले सामने आए हैं। ज्ञापन और विरोध प्रदर्शनों के बावजूद प्रशासन की मनमानी जारी है, जिससे छात्रों का भविष्य दांव पर है। मांग की जा रही है कि विश्वविद्यालय नियमों के तहत जल्द से जल्द फैसला ले, ताकि छात्रों को न्याय मिले।
एक धरने की गूंज
अर्चिता सिंह का धरना केवल एक छात्रा की लड़ाई नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन की जवाबदेही और पारदर्शिता की मांग का प्रतीक बन गया है। यह मामला न केवल बीएचयू, बल्कि देश भर के शैक्षणिक संस्थानों में व्याप्त समस्याओं की ओर ध्यान खींच रहा है। अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस मसले का समाधान कर पाएगा, या यह आंदोलन और तेज होगा? समय ही इसका जवाब देगा।