नई दिल्ली, 1 अप्रैल 2025, मंगलवार। भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है, अब रणनीतिक और आर्थिक विकास के एक नए दौर की ओर बढ़ रहा है। हाल ही में संसद की स्थायी समिति ने सरकार को एक महत्वपूर्ण सुझाव दिया है—पूर्वोत्तर की विषम भौगोलिक और सामरिक परिस्थितियों को देखते हुए सीमावर्ती सड़कों का विकास न केवल जरूरी है, बल्कि इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यह कदम न सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए सामाजिक और आर्थिक अवसरों के नए द्वार भी खोलेगा।
बजट और चुनौतियां
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास के लिए इस साल 19,499 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 1,950 करोड़ रुपये कम है। हालांकि, समिति ने स्पष्ट किया है कि धन की कमी को इस महत्वाकांक्षी योजना के आड़े नहीं आने देना चाहिए। पूर्वोत्तर जैसे संवेदनशील और रणनीतिक क्षेत्र में सड़क संपर्क, सामाजिक विकास और आजीविका परियोजनाओं को प्राथमिकता देना समय की मांग है। यह कमी नजरअंदाज करने योग्य नहीं है, लेकिन समिति का मानना है कि सही दिशा में निवेश और योजना इसे संतुलित कर सकती है।
तीन अहम फोकस क्षेत्र
समिति ने तीन मुख्य क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की सिफारिश की है, जो पूर्वोत्तर के विकास को गति दे सकते हैं:
- रणनीतिक बॉर्डर कनेक्टिविटी: भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र की सीमाएं चीन, म्यांमार और बांग्लादेश जैसे देशों से लगती हैं। इन क्षेत्रों में सड़क संपर्क का मजबूत होना न केवल सैन्य तैयारियों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि सीमा पर रहने वाले लोगों के जीवन को भी आसान बनाएगा। यह संपर्क राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ-साथ क्षेत्रीय एकता को भी बढ़ावा देगा। सामाजिक अवसंरचना: सड़कों का विकास सिर्फ परिवहन तक सीमित नहीं होना चाहिए। समिति ने सुझाव दिया कि बुनियादी ढांचे का निर्माण स्थानीय जरूरतों को ध्यान में रखकर हो। अस्पताल, शैक्षणिक संस्थान और अन्य सामाजिक सुविधाएं इस क्षेत्र में जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं। आर्थिक अवसरों को बढ़ावा: सड़क संपर्क से व्यापार, पर्यटन और स्थानीय उद्योगों को बल मिलेगा। पूर्वोत्तर के प्राकृतिक संसाधनों और हस्तशिल्प को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचाने के लिए यह एक सुनहरा अवसर हो सकता है।
एक नई उम्मीद की किरण
पूर्वोत्तर भारत लंबे समय से अपनी भौगोलिक दुर्गमता और अविकसित बुनियादी ढांचे के कारण मुख्यधारा से कटा हुआ महसूस करता रहा है। लेकिन अब, सरकार और संसद की स्थायी समिति के इस सुझाव के साथ, एक नई उम्मीद जगी है। यह सिर्फ सड़कों का निर्माण नहीं, बल्कि एक समृद्ध, सुरक्षित और आत्मनिर्भर पूर्वोत्तर की नींव रखने की शुरुआत है।
आगे की राह
हालांकि बजट में कमी एक चुनौती हो सकती है, लेकिन समिति का यह आश्वासन कि धन की कमी बाधा नहीं बनेगी, सकारात्मक संकेत देता है। जरूरत है तो बस इन योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करने की, ताकि पूर्वोत्तर का हर कोना विकास की रोशनी से जगमगा उठे। यह न केवल क्षेत्रीय विकास के लिए, बल्कि पूरे देश की प्रगति के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
पूर्वोत्तर अब सिर्फ भारत का एक कोना नहीं, बल्कि उसकी रणनीतिक ताकत और आर्थिक संभावनाओं का प्रतीक बनने की ओर अग्रसर है। यह समय है कि हम इस क्षेत्र को वह महत्व दें, जो यह सचमुच में हकदार है!