लखनऊ, 22 मई 2025, गुरुवार। उत्तर प्रदेश का पीलीभीत, जिसे तराई का ‘पंजाब’ कहा जाता है, इन दिनों एक गंभीर और संवेदनशील मुद्दे के कारण सुर्खियों में है। जिले के सिख बहुल गांवों में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण की खबरें सामने आई हैं, जहां करीब 3,000 सिखों के ईसाई धर्म अपनाने का दावा किया जा रहा है। स्थानीय गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों ने इस मामले को गंभीरता से उठाया है, और पुलिस-प्रशासन ने जांच शुरू कर दी है। आरोप है कि नेपाल की सीमा से सटे इन गांवों में लालच, अंधविश्वास और ‘चंगाई प्रार्थना सभाओं’ के जरिए सिखों का धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है।
धर्मांतरण का खेल: लालच और प्रार्थना सभाओं का जाल
पीलीभीत के पूरनपुर तहसील के बेल्हा, बमनपुरी, भागीरथ सिंघाड़ा और टाटरगंज जैसे सिख बहुल गांवों में यह मुद्दा जोर पकड़ रहा है। इन गांवों की कुल आबादी करीब 22,000 है, जिसमें से 10 फीसदी से अधिक लोगों ने कथित तौर पर अपना धर्म बदल लिया है। स्थानीय लोगों और गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों का आरोप है कि नेपाल से आने वाले पादरी और पंजाब के कुछ ईसाई मिशनरियां इस धर्मांतरण के पीछे हैं। ये लोग कथित तौर पर बीमारियों के इलाज, आर्थिक मदद और अंधविश्वास का सहारा लेकर सिख समुदाय को अपने जाल में फंसा रहे हैं।
बेल्हा गांव की मनजीत कौर की शिकायत इसका एक जीता-जागता उदाहरण है। उन्होंने पुलिस को बताया कि उनके पति को ईसाई बना लिया गया और मिशनरियां उन पर भी जबरन धर्म परिवर्तन का दबाव बना रही थीं। इस मामले में 8 नामजद और 48 अज्ञात लोगों के खिलाफ हजारा थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है।
सिखों की पहचान पर सवाल, घरों पर क्रॉस के निशान
इस धर्मांतरण की खास बात यह है कि कन्वर्ट होने वाले सिखों को न तो अपना नाम बदलने के लिए कहा जाता है और न ही उनकी पगड़ी या पारंपरिक वेशभूषा में बदलाव किया जाता है। फिर भी, कई घरों पर क्रॉस के निशान देखे गए हैं, जो धर्मांतरण का प्रतीक माने जा रहे हैं। शिकायतों के बाद प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए अवैध रूप से बन रहे एक गिरजाघर को हटवाया और कई घरों से क्रॉस के निशान हटाए गए।
स्थानीय सिख समुदाय में इस बात को लेकर खौफ है कि उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान खतरे में है। ऑल इंडिया सिख पंजाबी वेलफेयर काउंसिल के प्रदेश अध्यक्ष हरपाल सिंह जग्गी ने बताया कि 2020 से नेपाल से आने वाले प्रोटेस्टेंट पादरियों द्वारा यह सिलसिला चल रहा है। उनका कहना है कि गरीबी और शिक्षा की कमी के कारण लोग इन मिशनरियों के प्रलोभनों का शिकार हो रहे हैं।
गुरुद्वारों की ‘घर वापसी’ की मुहिम
गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियां इस स्थिति से निपटने के लिए सक्रिय हो गई हैं। बेल्हा के नानक नगरी गुरुद्वारे ने अब तक 160 लोगों की ‘घर वापसी’ कराई है, जो ईसाई बनने के बाद वापस सिख धर्म में लौट आए। इसके लिए बड़े पैमाने पर अमृतपान कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। साथ ही, गुरुद्वारे ने उन 9 लोगों की सूची सार्वजनिक की है, जो कथित तौर पर सिखों को ईसाई बनाने में शामिल हैं। इन लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने के लिए उनका ‘हुक्का-पानी’ बंद करने का ऐलान किया गया है।
व्यक्तिगत कहानियां: बीमारी और विश्वास का खेल
धर्मांतरण की कहानियां सुनकर यह साफ होता है कि मिशनरियां लोगों की भावनाओं और जरूरतों का फायदा उठा रही हैं। बेल्हा के लखविंदर सिंह ने बताया कि उनके बेटे की बीमारी के कारण वह प्रार्थना सभाओं में जाने लगे, लेकिन जब बेटे की हालत नहीं सुधरी, तो वे वापस सिख धर्म में लौट आए। वहीं, दलवीर सिंह का कहना है कि उनकी कैंसर जैसी बीमारी प्रार्थना सभाओं से ठीक हो गई, जिसके बाद उनका झुकाव ईसाई प्रार्थनाओं की ओर हो गया। हालांकि, वह खुद को सिख धर्म से अलग नहीं मानते।
प्रशासन का रुख और जांच
पूरनपुर के एसडीएम अजीत प्रताप सिंह ने कहा कि प्रशासन बड़े पैमाने पर किसी सुनियोजित धर्मांतरण की साजिश को नहीं मानता। उनका कहना है कि शिकायतों की जांच की जा रही है, लेकिन अभी तक कोई गंभीर मामला सामने नहीं आया है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर कोई अपनी मर्जी से प्रार्थना सभाओं में जाता है, तो उसे रोका नहीं जा सकता। फिर भी, जिला प्रशासन और पुलिस इस मामले को गंभीरता से ले रही है। डीएम संजय कुमार सिंह ने पूरनपुर के उप-जिलाधिकारी और पुलिस को जांच के निर्देश दिए हैं।
विदेशी ताकतों का खतरा?
ऑल इंडिया सिख पंजाबी वेलफेयर काउंसिल ने इस मामले को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ते हुए गंभीर चिंता जताई है। हरपाल सिंह ने दावा किया कि नेपाल के रास्ते विदेशी ताकतें इस धर्मांतरण को अंजाम दे रही हैं, जिससे देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा हो सकता है। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक से निष्पक्ष जांच की मांग की है।
क्या है असली सवाल?
पीलीभीत में चल रहा यह धर्मांतरण विवाद कई सवाल खड़े करता है। क्या यह केवल व्यक्तिगत आस्था का मामला है, या इसके पीछे कोई सुनियोजित साजिश है? गरीबी और अशिक्षा का फायदा उठाकर क्या वाकई सिख समुदाय की पहचान को निशाना बनाया जा रहा है? प्रशासन की जांच और गुरुद्वारा कमेटियों की मुहिम इस मामले में कितनी कारगर होगी, यह आने वाला वक्त बताएगा। फिलहाल, पीलीभीत के सिख समुदाय में एक अनिश्चितता का माहौल है, और यह मुद्दा न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी गहरे सवाल उठा रहा है।