नई दिल्ली, 7 अगस्त 2025: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सभी राज्यों को अनाथ बच्चों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) के दायरे में लाने का निर्देश दिया है। यह आदेश लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता पौलोमी पाविनी शुक्ला द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के दौरान दिया गया।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकारें सरकारी आदेश (G.O.) जारी कर अनाथ बच्चों को RTE के तहत स्कूलों में प्रवेश सुनिश्चित करें। कोर्ट ने इस आदेश के पालन के लिए चार सप्ताह का समय दिया है।
न्यायालय ने संवैधानिक सिद्धांत ‘पैरन्स पैट्रिए’ (Parens Patriae) का उल्लेख करते हुए राज्य को अनाथ बच्चों का ‘पालक पिता’ मानकर उनकी शिक्षा और देखभाल की जिम्मेदारी लेने को कहा। साथ ही, संविधान के अनुच्छेद 51 का हवाला देते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को अनाथ बच्चों का अधिकार बताया। कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिया कि वे स्कूल से बाहर रह रहे अनाथ बच्चों का सर्वेक्षण कर उनकी शिक्षा की व्यवस्था करें।
याचिकाकर्ता पौलोमी पाविनी शुक्ला ने इस फैसले को ‘दूरदर्शी और करुणामय’ बताते हुए कहा कि यह लाखों अनाथ बच्चों को समान शिक्षा का अवसर देगा। यूनिसेफ के अनुसार, भारत में 2 करोड़ से अधिक अनाथ बच्चे हैं, जिनकी कोई आधिकारिक गिनती नहीं हुई। शुक्ला ने जनगणना में अनाथ बच्चों को शामिल करने की मांग भी उठाई, जिस पर सॉलिसिटर जनरल ने सकारात्मक जवाब दिया।
शुक्ला, जिन्हें उनकी पुस्तक “Weakest on Earth – Orphans of India” और अनाथ बच्चों के लिए कार्य के लिए “Forbes 30 Under 30” में शामिल किया गया है, ने इस फैसले को न्याय और करुणा का प्रतीक बताया। यह निर्णय देश के सबसे कमजोर बच्चों की अनसुनी आवाज को सशक्त करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।