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Monday, August 11, 2025

संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि का बयान: ‘विकसित भारत’ का सपना स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर निर्भर

भारत में संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि समन्वयक शॉम्बी शार्प ने कहा है कि ‘विकसित भारत’ का सपना तभी पूरा हो सकता है, जब स्कूलों में बच्चों को न केवल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले, बल्कि उन्हें जिम्मेदार और आदर्श नागरिक बनने के लिए प्रेरित किया जाए। शॉम्बी शार्प ने कहा कि भारत के 26.52 करोड़ छात्रों में बदलाव के प्रेरक बनने की जबरदस्त क्षमता है। उन्होंने समावेशी और शांतिपूर्ण समाज बनाने में गुणवत्तापूर्ण और मूल्यों पर आधारित शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया। 
संयुक्त राष्ट्र के मादक पदार्थ और अपराध कार्यालय (यूएनओडीसी ) ने बुधवार को अपने ‘राइजअप4पीस’ शैक्षिक पहल के बारे में बयान जारी किया। यह पहल युवाओं को नकारात्मक प्रभावों, नई कमजोरियों और जोखिमपूर्ण व्यवहारों का विरोध करने के लिए जागरूक और सशक्त बनाने पर केंद्रित है। 
उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री की तरफ से कल्पित ‘विकसित भारत’ का सपना तभी साकार होगा जब बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ-साथ जिम्मेदार नागरिक बनने की प्रेरणा मिले। भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी) और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा 2023 (एनसीएफ) इस बात को स्वीकार करते हैं कि जिम्मेदार नागरिकों को तैयार करना, जो शांति और सद्भाव में योगदान दे सकें, अत्यंत आवश्यक है।  
इस पहल ने इस वर्ष 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 30,000 से अधिक भागीदारों को शामिल किया है।  इसमें शिक्षकों का प्रशिक्षण, स्कूल-आधारित पहल और छात्रों के लिए गतिविधि-आधारित शिक्षण शामिल है।कला, प्रौद्योगिकी और खेल का उपयोग करके छात्रों को सशक्त बनाने के लिए अभिनव हस्तक्षेप किए गए।  
नई दिल्ली में एनसीईआरटी और यूएनओडीसी साउथ एशिया की तरफ से आयोजित ‘राइजअप4पीस’ नीति सलाहकार बैठक में 70 से अधिक नीति-निर्माताओं, शिक्षकों और युवा नेताओं ने भाग लिया। इस दौरान नीति निर्माताओं, शिक्षकों और छात्रों ने पाठ्यक्रम में सुधार, अच्छे अभ्यास और नए विचारों पर चर्चा की।  
एनसीईआरटी के संयुक्त निदेशक अमरेंद्र प्रसाद बेहरा ने शिक्षकों से आग्रह किया कि वे क्षमताओं का निर्माण करें और मूल्य-आधारित शैक्षिक मॉड्यूल विकसित करें। उन्होंने कहा, एनईपी 2020 और एनसीएफ 2023 शिक्षा को एक अधिक न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण समाज के लिए सेतु के रूप में देखते हैं। ऐसे सहयोग दृष्टि को क्रियान्वयन में बदलते हैं। इस चर्चा में यह स्पष्ट हुआ कि शिक्षा को बदलने के लिए पूरे समाज का सहयोग जरूरी है, जहां नीति निर्माता, शिक्षक और छात्र समान भागीदार हों। इस दिशा में प्रयास संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करेंगे।

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