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Sunday, July 6, 2025

राज्य सरकार अनुसूचित क्षेत्र में स्थानीय उम्मीदवारों के लिए 100 फीसदी आरक्षण तय नहीं कर सकती, झारखंड सरकार की अधिसूचना रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मंगलवार को कहा, एक राज्य सरकार अनुसूचित क्षेत्र में स्थानीय उम्मीदवारों के लिए 100 फीसदी आरक्षण तय नहीं कर सकती। यह पूरी तरह असांविधानिक है और सार्वजनिक रोजगार में गैर-भेदभाव के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। शीर्ष अदालत ने सेकेंडरी स्कूलों के लिए प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (टीजीटी) भर्ती से संबंधित मामले में यह टिप्पणी की।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, सार्वजनिक रोजगार के अवसर से अन्यायपूर्ण तरीके से कुछ व्यक्तियों को वंचित नहीं किया जा सकता है। यह कुछ लोगों का विशेषाधिकार नहीं है। ऐसा करने पर शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है। नागरिकों को समान अधिकार हैं और एक वर्ग के लिए अवसर पैदा करके दूसरों को पूरी तरह से बाहर करने पर संविधान निर्माताओं ने विचार नहीं किया था। इस टिप्पणी के साथ ही शीर्ष अदालत ने झारखंड राज्य द्वारा राज्य के 13 अनुसूचित जिलों में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी पदों में स्थानीय निवासियों के लिए 100 फीसदी आरक्षण प्रदान करने संबंधी 2016 में जारी एक अधिसूचना को रद्द कर दिया। पीठ ने कहा, संबंधित अनुसूचित जिलों व क्षेत्रों के केवल स्थानीय निवासियों के लिए प्रदान किया गया 100 फीसदी आरक्षण भारत के संविधान के अनुच्छेद-16 (2) का उल्लंघन है। यह गैर-अनुसूचित क्षेत्रों व जिलों के अन्य उम्मीदवारों व नागरिकों के अधिकारों को प्रभावित करने वाला है।

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि अनुच्छेद-16 (3) व अनुच्छेद-35 के अनुसार, स्थानीय अधिवास (डोमिसाइल) आरक्षण केवल संसद द्वारा अधिनियमित कानून के माध्यम से प्रदान किया जा सकता है। राज्य विधानमंडल को ऐसा करने की शक्ति नहीं है। इसलिए अधिसूचना अनुच्छेद-16(3) और 35 का उल्लंघन है।

 

फैसले में इस कानून का किया पालन

पीठ ने चेब्रोलू लीला प्रसाद राव व अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा 2020 में निर्धारित कानून का पालन किया। इसमें अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए अनुसूचित क्षेत्रों में शिक्षण पदों पर 100 फीसदी आरक्षण को असांविधानिक घोषित कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने झारखंड राज्य व कुछ लोगों द्वारा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर यह फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने अधिसूचना को रद्द कर दिया था।

 

ऐसे शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ेगा असर

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, प्राथमिक शिक्षा के मामले स्थानीय लोगों द्वारा स्थानीय (जनजातीय) भाषा में पढ़ाना लाभकारी हो सकता है लेकिन पांचवीं कक्षा से ऊपर की शिक्षा में यह सिद्धांत लागू नहीं होता। ऐसे में अनुसूचित क्षेत्रों के बाहर के लोगों को अवसर प्रदान नहीं किया गया तो शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा।

newsaddaindia6
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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