लखनऊ, 24 जून 2025: समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने बागी विधायकों के खिलाफ आखिरकार सियासी तलवार खींच ही ली। 2024 के राज्यसभा चुनाव में पार्टी के 7 विधायकों की बगावत के डेढ़ साल बाद, अखिलेश ने 3 बागियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। अयोध्या के गोसाईगंज से विधायक अभय सिंह, अमेठी के गौरीगंज से राकेश प्रताप सिंह और रायबरेली के ऊंचाहार से मनोज पांडेय को सपा ने निष्कासित कर दिया। लेकिन बाकी 4 बागियों पर कार्रवाई न करने से सियासी गलियारों में सवाल गूंज रहे हैं—क्या यह अखिलेश का मास्टरस्ट्रोक है या मजबूरी?
क्यों पड़ी तीन पर गाज?
सपा ने अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह और मनोज पांडेय को ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की विचारधारा के खिलाफ काम करने और बीजेपी के लिए सियासी पिच तैयार करने का दोषी ठहराया। पार्टी ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर कहा, “सांप्रदायिक, विभाजनकारी और नकारात्मक राजनीति करने वालों का सपा में कोई स्थान नहीं।” इन तीनों विधायकों ने न सिर्फ 2024 के राज्यसभा चुनाव में बीजेपी के पक्ष में वोट किया, बल्कि बाद में भी अखिलेश के खिलाफ तीखी बयानबाजी की। राकेश प्रताप ने तो अखिलेश को “छोटे दिल का इंसान” तक कह डाला, जबकि अभय और मनोज सपा को “हिंदू विरोधी” करार दे चुके हैं।
चार बागियों पर मेहरबानी, क्यों?
चायल की विधायक पूजा पाल, कालपी के विनोद चतुर्वेदी, अंबेडकर नगर के राकेश पांडेय और बिसौली के आशुतोष मौर्य पर अखिलेश ने कोई कार्रवाई नहीं की। सपा का कहना है कि इन चारों को “हृदय परिवर्तन” के लिए दी गई अनुग्रह अवधि अभी बाकी है और इनका व्यवहार पार्टी के खिलाफ नहीं है। सूत्रों की मानें तो इन चारों ने अखिलेश के खिलाफ खुलकर बयानबाजी नहीं की, जिसके चलते उन्हें फिलहाल बख्शा गया।
पीडीए फॉर्मूले पर सपा की नजर
सियासी विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश का यह कदम 2027 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर उठाया गया है। निष्कासित तीनों विधायक सवर्ण समुदाय (दो ठाकुर, एक ब्राह्मण) से हैं, जिनका सपा के पीडीए फॉर्मूले पर खास असर नहीं पड़ेगा। वहीं, बचे हुए चार बागियों में पूजा पाल और आशुतोष मौर्य पिछड़ी जाति से हैं, जो सपा के गैर-यादव ओबीसी वोट बैंक का अहम हिस्सा हैं। राकेश पांडेय और विनोद चतुर्वेदी ब्राह्मण हैं, जिन्हें बख्शकर अखिलेश ने सवर्ण वोटों को भी साधने की कोशिश की है।
अखिलेश का मास्टरस्ट्रोक या मजबूरी?
अखिलेश का यह फैसला सपा के कोर वोट बैंक—दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक—को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। तीनों निष्कासित विधायक बीजेपी नेताओं की तरह काम कर रहे थे और सीएम योगी से लेकर अमित शाह तक से उनकी मुलाकातें चर्चा में थीं। लेकिन चार बागियों को बख्शने का फैसला सवाल खड़े कर रहा है। क्या अखिलेश ने सियासी समीकरण साधने के लिए यह कदम उठाया, या फिर पार्टी में एकजुटता बनाए रखने की मजबूरी थी? यह तो वक्त ही बताएगा। फिलहाल, अखिलेश के इस सियासी दांव ने यूपी की राजनीति में हलचल मचा दी है। सपा का यह कदम 2027 के रण में कितना कारगर होगा, यह देखना बाकी है।