दिल्ली, सीधा खड़े होना कितना आवश्यक है या सीधा बैठना कितना जरूरी है और उसके लिए मेरूदंड यानि रीड़ की हड्डी का स्वस्थ और लचीला होना कितना जरूरी है, सिर्फ बैठने, सीधा खड़े होने ही नही झुकने, चलने और बाकी अंगों के ठीक से संचालन के लिए भी रीढ की हड्डी का मजबूत और लचीला होना बेहद जरूरी है। दरअसल रीढ़ की हड्डी मनकों से बनी जिसमें से दिमाग से आने वाली नसें और नाड़ियां शरीर के अलग अगल अंगों जुड़ी होती है जिससे मष्तिष्क से बाकी अंगों को संदेशों का आदान प्रदान होता है, जिससे पूरे शरीर के अंगों के संचालन की व्यवस्था बनी रहती है।
रीढ़ की ह्ड्डी की सरंचना
शरीर के इस जरूरी हिस्से या फिर अहम हिस्से को समझने के लिए इसकी सरंचना को समझना बेहद जरूरी है। रीढ़ की हड्डी में 26 गोटियां जिन्हे कशेरूक कहते है, चार भागों में बांट सकते है 7 गर्दन(ग्रीवा रीढ़), 12 पीठ(वक्षीय रीढ़), 5 कमर(काठ का रीढ़) और 2 बस्ति प्रदेश(त्रिकास्थि) की। इनके बीच एक एक जैल तरह की गद्दी रहती है जिससे इनमें लोच रहती है। अगर योग की भाषा में समझे तो इसी मेरूदंड से इड़ा, पिंगला और सुषुमा नाड़ियां निकलती है।
ये मेरूदंड लचीला है तो उम्र कोई भी हो, आप जवान है हमारा स्वास्थ मष्तिष्क से लेकर पेट और पैरो तक इस रीढ़ की हड्डी पर काफी निर्भर करता है, जब तनाव होता है तो कमर थोड़ी झुक जाती है या फिर गर्दन में दर्द या तनाव बढ जाता है, रीढ़ की हड्डी की समस्या होने पर पेट साफ नही हो पाता, चक्कर आना, कंधो में दर्द, उल्टी आना, हाथ पैर की उंगलियां सुन्न होना, उठने बैठने चलने में दिक्कत, जबड़े का दर्द इनसे अकसर रीढ़ की हड्डी के विकार के कारण जूझना पड़ता है।
आज के आधुनिक और भागदौड़ वाले जीवन से शरीर के इस अहम अंग पर इतना प्रभाव पड़ रहा है, जिसके कारण कम उम्र के लोगों को भी जूझना पड़ रहा है। देर तक एसी कमरो में एक ही पोजिशन में बैठकर लगातार काम करना , फास्ट फूड को जीवन में शामिल करना, मोटे और लचीले गद्दों पर सोना, धुम्रपान और नशीले पदार्थों का सेवन, सुबह की धूप ना लेना वो खराब आदतें है जो शरीर के इस महत्वपूर्ण अंग पर बुरा प्रभाव डालती है।
रीढ़ की हड्डी के विकार
–स्लिप डिस्क : डिस्क का सूखना, हिलना या चोट लगना
-सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस : कंधों और गर्दन मे अकड़न
-ऑस्टियोआर्थराइटिस : हड्डियों से सिरों में मौजूद सुरक्षा कवच का प्रभावित होना
-साइटिका : साइटिका नस में सूजन या दबाव पड़ना
-ट्यूमर (कैंसर) : रीढ़ में ट्यूमर का होना
-स्कोलियोसिस : हड्डी के आकार में परिवर्तन आना
हम यहां अब जानेंगे कि रीढ़ की हड्डी के कुछ विकारों जैसे सर्वाकल, ऑस्टियोआर्थराइटिस, साइटिका, स्लिपडिस्क और स्कोलियोसिस जैसी समस्याओं को प्राकृतिक उपायों से कैसे ठीक किया जा सकता है। कुछ भारतीय चिकित्सा पद्तियां इसमें काफी हद तक सहायक होती है। जिसमें ध्यान, आहार, आसन, उपवास व प्राकृतिक चिकित्सा मुख्य रूप से सहायक है।
आसन
योग में कई ऐसे आसन है, जो रीढ़ की हड्डी के सही पोस्चर और कई विकारों को सही करने में कारगर होते है। जैसे उष्ट्रासन, भुजंगासन, शलभासन, मकरासन, पवनमुक्तासन, वज्रासन, लेटकर ताड़ासन और सूर्यनमस्कार की दूसरी, चौथी, सातवी, आठवी, नौवी और ग्यारहवी स्थिति। ध्यान रहे कि आगे झुकने वाले कोई काम या आसन ना करें। वहीं जबरदस्ती कोई भी आसन या कसरत करने से और क्षति पहुंच सकती है।
प्राकृतिक उपचार
कमर दर्द या किसी विकार के लिए कटिस्नान, पेट पर ठंडे पानी की पट्टी, गर्म तेलों की मालिश, कमर पर नमक के गर्म पानी की पट्टी की सिकाई लाभदायक है।
ध्यान
ध्यान के जरिए तकलीफ वाली जगह की एनर्जी एक्टिवेट करने से तकलीफ धीरे धीरे कम होती है। वहीं स्वर विज्ञान भी इसमें काफी सहायक है। ध्यान में बैठकर धीरे धीरे लम्बी सांस लें, उसे रोके, फिर दर्द वाली जगह पर ध्यान लगाएं और वहां ठंडक महसूस करते हुए मन में उस हिस्से की तस्वीर बनाते हुए सोचें कि वह हिस्सा धीरे धीरे स्वस्थ हो रहा है, अब धीरे धीरे सांस बाहर छोडे। ये प्रक्रिया बार बार करें।
आहार
हमारे शरीर की हर तकलीफ में हम क्या खाते है ये भी निर्भर करता है। गलत आहार अस्वस्थ करने के साथ साथ तकलीफ और बढाता है। हड्डी के किसी भी तरह के दर्द में वात बढ़ाने वाले आहार जैसे राजमा, उरद दाल, अरबी, कटहल, तला भुना, तीखा, ज्यादा खट्टा, दही, रात में चावल, ज्यादा ठंडा और कब्ज करने वाले आहार लेने से बचे।
हल्का व पोष्टिक आहार ले।
कुछ उपचार रसोई से
–रात को मेथी दाना भिगोकर सुबह उसका पानी पिए और कुछ दाने खा लें।
–रात को त्रिफला चूर्ण गुनगुने दूध या पानी से लें।
–हरसिंगार के चार से छह पत्ते अच्छी तरह पानी में उबाल लें, बाद में इसे धीरे धीरे करके पिए।
रीढ़ की हड्डियों की श्रंखला मानव शरीर का आधार है। इसमें आई कोई भी कमी पूरे शरीर की व्यवस्था को छिन्न भिन्न कर सकती है। इसलिए जरूरी है इसका ध्यान रखना और कोई भी समस्या होने पर जल्द उसके उपायों पर जोर देना, साथ ही इसमें चोट लगने या गंभीर बीमारी के दौरान जल्द से जल्द चिकित्सीय उपचार लेना।