अयोध्या, 6 अप्रैल 2025, रविवार। रामनगरी अयोध्या में रामनवमी का पावन पर्व हर साल भक्ति और उल्लास के रंग में रंग जाता है। इस बार यह अवसर और भी खास बन गया जब समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद अवधेश प्रसाद अपने पूरे परिवार के साथ श्री राम लला के दर्शन करने पहुंचे। अपनी बहू, बेटे, पोते और बेटी के साथ उन्होंने नन्हे राम लला का आशीर्वाद लिया और इस पवित्र क्षण को अपने जीवन का सौभाग्य बताया। यह दृश्य न केवल आस्था की गहराई को दर्शाता है, बल्कि एक राजनेता के निजी जीवन में संस्कृति और परंपरा के महत्व को भी उजागर करता है।
6 अप्रैल 2025 को, जब देश भर में रामनवमी की तैयारियां जोरों पर थीं, अवधेश प्रसाद ने अपने परिवार के साथ अयोध्या के भव्य राम मंदिर में कदम रखा। यह पहली बार था जब वे सांसद बनने के बाद श्री राम जन्मभूमि मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचे। उनके साथ उनकी बहू, बेटा और नन्हे पोते-पोती की मौजूदगी ने इस पल को और भी भावुक बना दिया। मंदिर के गर्भगृह में राम लला की मूर्ति के सामने खड़े होकर उन्होंने प्रार्थना की और अपने परिवार के लिए सुख-समृद्धि की कामना की। इस दौरान उनकी आंखों में श्रद्धा और चेहरे पर संतोष साफ झलक रहा था।
अवधेश प्रसाद ने दर्शन के बाद कहा, “मैं खुद को बेहद सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे अपने परिवार के साथ राम लला के दर्शन का अवसर मिला। यह मंदिर हमारी आस्था का प्रतीक है, और इसका निर्माण अभी अधूरा है। मुझे उम्मीद है कि यह जल्द ही पूर्ण होगा।” उन्होंने यह भी संकेत दिया कि सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भी जल्द ही राम लला के दर्शन के लिए अयोध्या आएंगे, जिससे इस यात्रा का राजनीतिक और सामाजिक महत्व और बढ़ गया।
यह घटना इसलिए भी खास है क्योंकि अयोध्या और राम मंदिर का मुद्दा लंबे समय से भारतीय राजनीति में चर्चा का केंद्र रहा है। ऐसे में एक प्रमुख विपक्षी दल के सांसद का परिवार सहित दर्शन करना यह दर्शाता है कि आस्था और राजनीति के बीच भी एक संतुलन हो सकता है। अवधेश प्रसाद का यह कदम उनके व्यक्तिगत विश्वास के साथ-साथ उनके निर्वाचन क्षेत्र फैजाबाद (जिसमें अयोध्या शामिल है) के प्रति उनकी जिम्मेदारी को भी रेखांकित करता है।
रामनवमी के इस अवसर पर मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ी थी, लेकिन सांसद के परिवार का सादगी भरा अंदाज सभी का ध्यान आकर्षित कर रहा था। बच्चों के हाथों में पूजा की थाली और बड़ों की आंखों में भक्ति का भाव देखकर यह स्पष्ट था कि यह यात्रा उनके लिए महज औपचारिकता नहीं, बल्कि दिल से जुड़ा एक अनुभव थी।
अवधेश प्रसाद की यह यात्रा एक संदेश भी देती है- कि आस्था और संस्कृति किसी एक विचारधारा की बपौती नहीं है। यह हर उस व्यक्ति की धरोहर है जो इसे अपने जीवन का हिस्सा मानता है। राम लला के दर्शन के बाद उनकी यह टिप्पणी कि “अहंकार टूटता है तो प्रभु श्रीराम के चरण ही दिखाई देते हैं,” उनके इस अनुभव की गहराई को बयां करती है।