गणपति बप्पा मोरया! काशीवासियों ने धूमधाम से किया बप्पा का स्वागत
अंशुल मौर्या
वाराणसी, लघु भारत के रूप में मशहूर काशी में गणेश उत्सव का शुभारंभ शनिवार से हो गया हैं।
दस दिनों तक गणेश जी की भक्ति के साथ ही उत्सव की चमक मराठी मोहल्लों में नजर आएगा। गलियों के शहर काशी में ब्रह्मा घाट, बीवी हटिया, पंचगंगा घाट, दुर्गा घाट पर मराठा समाज के लोग रहते हैं। वहां, मराठा समाज के सबसे बड़े उत्सव के अवसर पर मिनी महाराष्ट्र की झलक दिखेगी।
काशीपुराधिपति की नगरी काशी में एक दर्जन स्थानों पर सार्वजनिक गणेशोत्सव का आरंभ विध्नहर्ता की प्रतिमा स्थापना के साथ हुआ। बच्चों और बुजुर्गों सहित परिवार के लोग ‘गणपति बप्पा मोरया’ के जयघोष और ढोल-नगाड़ों के बीच अपने प्रिय भगवान को घर लाने के लिए सुबह-सुबह ही अपने घरों से निकल पड़े। काशी के प्रकांड विद्वान पंडित बृजेन्द्र शास्त्री ने बताया कि इस बार गणेश चतुर्थी पर रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का शुभ संयोग बना है। जो भक्तों के लिए विशेष फलदायक होता है।
काशी के प्रथम सार्वजनिक गणेशोत्सव का गौरव रखने वाले ब्रह्मा घाट स्थित काशी गणेशोत्सव कमेटी इस साल 127वें वर्ष का उत्सव मना रही है। तो वहीं, दुर्गाघाट स्थित नूतन बालक गणेशोत्सव समाज के बैनर तले इस बार 116वें गणेशोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। अगस्त्यकुंड स्थित अति प्राचीन शारदा भवन, अगस्त्यकुंडा में गणेशोत्सव का 96वां वर्ष है। मानसरोवर स्थित श्रीराम तारक आंध्रा आश्रम में सुबह 9 बजे पंच धातु से बनी श्रीगणेश मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा दक्षिण भारतीय पद्धति से की गई। तत्पश्चात मंडप आराधना, कंकण धारण, अष्ट दिक्पालक पूजा नवग्रह पूजा, गणेश प्रतिमा का पंचामृत रुद्राभिषेक, सहस्त्रनाम पूजा आदि अनुष्ठान किए गए।
श्री काशी विश्वनाथ की नगरी काशी जहां हर देव पूजे जाते हैं। हर देव से जुड़े पर्व धूम-धाम से मनाए जाते हैं। हर देवी-देवता का विग्रह है यहां। ऐसे में भोले नाथ और माता पार्वती के पुत्र प्रथमेश गणेश भला कैसे छूट सकते हैं। इस काशी में गणेश के एक-दो नहीं बल्कि 67 पीठ है। इसमें 11 गणेश पीठ और 56 विनायक पीठ है। इन सभी का अलग-अलग महत्व है। अलग-अलग छवि और कार्य बताए गए हैं। महाराष्ट्र के बाद काशी ही है जहां पूरे उत्साह के साथ गणेशोत्सव मनाया जाता है। मां दुर्गा और मां सरस्वती पूजन की तरह गणेश पूजा पंडाल सजाए जाते हैं।