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Monday, June 23, 2025

इज़राइल-ईरान संघर्ष पर चुप्पी को सोनिया गांधी ने बताया भारत की नैतिक हार

  • भारत ने फलस्तीन नीति और नैतिक मूल्यों से किनारा किया
  • सोनिया गांधी ने इज़राइल-ईरान मुद्दे पर सरकार की चुप्पी की आलोचना की

नई दिल्ली, 23 जून 2025। कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने इज़राइल और ईरान के बीच चल रहे संघर्ष पर भारत सरकार की चुप्पी को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यह चुप्पी केवल भारत की आवाज़ का नहीं, बल्कि उसके मूल्यों और नैतिक परंपराओं का भी आत्मसमर्पण है। ‘द हिंदू’ में प्रकाशित अपने लेख में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति की दिशा पर सवाल उठाते हुए यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने भारत के लंबे समय से चले आ रहे फलस्तीन-समर्थक रुख को त्याग दिया है।

भारत की चुप्पी को मूल्यों का आत्मसमर्पण बताया

सोनिया गांधी ने कहा कि भारत सरकार ने दो बड़े अंतरराष्ट्रीय संकटों—गाज़ा पर इज़राइली बमबारी और अब ईरान पर हमले—के दौरान मौन साध लिया। उन्होंने लिखा, “गाज़ा में तबाही और अब ईरान पर बिना उकसावे की आक्रामकता पर नई दिल्ली की चुप्पी हमारे नैतिक और कूटनीतिक मूल्यों से खतरनाक विचलन को दर्शाती है।”

उन्होंने याद दिलाया कि भारत हमेशा दो-राज्य समाधान का समर्थक रहा है जिसमें फलस्तीन और इज़राइल शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रहें। लेकिन अब सरकार की खामोशी इस नीति से हटने की ओर इशारा करती है।

हाल ही में जब इज़राइल ने ईरानी सैन्य और परमाणु ठिकानों पर हमले किए, तब विदेश मंत्रालय ने केवल ‘गंभीर चिंता’ जताई थी, जिसे सोनिया गांधी ने अपर्याप्त और असंवेदनशील करार दिया।

ईरान का समर्थन, बेंजामिन नेतन्याहू और ट्रंप पर निशाना

सोनिया गांधी ने अपने लेख में ईरान को भारत का पुराना और विश्वसनीय सहयोगी बताया। उन्होंने याद दिलाया कि 1994 में जब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में कश्मीर पर भारत के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया था, तब ईरान ने भारत का समर्थन किया था। उन्होंने यह भी कहा कि ईरान की इस्लामी सरकार पाकिस्तान की तरफ झुकने वाले उसके पुराने शासन से अलग रही है और भारत के साथ सहयोगात्मक रुख अपनाया है।

सोनिया गांधी ने 13 जून को इज़राइल द्वारा ईरान पर किए गए हमलों को गैरकानूनी और नागरिकों की सुरक्षा की अनदेखी करने वाला बताया। उन्होंने लिखा, “दुनिया ने एकतरफा सैन्य आक्रामकता के खतरनाक नतीजे देखे हैं।”

उन्होंने इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को शांति प्रक्रिया को कमजोर करने और उग्रवाद को बढ़ावा देने वाला बताया। साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर भी निशाना साधते हुए कहा कि उन्होंने ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं पर अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की राय को नकारा है, जो चिंताजनक है।

उन्होंने आरोप लगाया कि पश्चिमी देशों के बिना शर्त समर्थन ने इज़राइल को इन आक्रामक कार्रवाइयों के लिए उकसाया है और यह वैश्विक स्थिरता के लिए खतरनाक है। सोनिया गांधी ने भारत से अपील की कि वह अपने नैतिक दायित्वों को समझे और मध्य एशिया में शांति बहाल करने के लिए अपने कूटनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करे।

अपने लेख के अंत में उन्होंने इस क्षेत्र में रहने वाले लाखों भारतीय नागरिकों का ज़िक्र किया और चेतावनी दी कि भारत की चुप्पी न केवल उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा को भी खतरे में डाल रही है।

सोनिया गांधी का यह लेख कांग्रेस पार्टी की ओर से हाल के वर्षों में विदेश नीति पर सबसे तीखी प्रतिक्रिया मानी जा रही है, जो मोदी सरकार पर इस संवेदनशील मुद्दे पर रुख स्पष्ट करने का दबाव बना सकता है।

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