नई दिल्ली, 23 जुलाई 2025: महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर भगवान शिव की महिमा और उनके तांडव नृत्य की गूंज देशभर में सुनाई दे रही है। शिव, जो भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के प्रतीक हैं, न केवल देवों के देव हैं, बल्कि असुरों, द्रविड़ों, कोलकिरातों और समस्त मानवता के भी आराध्य हैं। वे पशुपति हैं, स्मशानवासी हैं, विषपायी हैं और अमृत बांटने वाले हैं। शिव भारतीयता की एकात्मता के जीवंत प्रतीक हैं, जिनमें सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह की पांच मुख्य ऊर्जाएं समाहित हैं।
तांडव: नृत्य, शक्ति और सृष्टि का प्रतीक
शिव का तांडव नृत्य केवल एक नृत्य नहीं, बल्कि विश्व के निर्माण और विध्वंस का द्योतक है। शैव सिद्धांतों में शिव को नटराज, यानी नृत्य का राजा माना जाता है। मान्यता है कि भरत मुनि को नाट्यशास्त्र में अंगहार और 108 कारणों की शिक्षा तण्डु ने शिव के आदेश पर दी थी। नाट्यशास्त्र के चौथे अध्याय ‘तांडव लक्षणम्’ में 32 अंगहार और 108 कारणों का वर्णन है, जो नृत्य के साथ-साथ युद्धकला में भी प्रयुक्त होते हैं। तांडव के सात मुख्य प्रकार—आनंद तांडव, त्रिपुर तांडव, संध्या तांडव, संहार तांडव, कालिका तांडव, उमा तांडव और गौरी तांडव—हिंदू ग्रंथों में उल्लिखित हैं। विद्वान आनंद कुमारस्वामी ने अपनी पुस्तक The Dance of Shiva में तांडव के 16 रूपों का भी जिक्र किया है।
पार्वती का लास्य: तांडव का सौम्य प्रतिरूप
शिव के तांडव के जवाब में माता पार्वती का लास्य नृत्य सौम्यता और भावपूर्णता का प्रतीक है। लास्य के दो प्रकार—जरित लास्य और यौविक लास्य—आज भी नृत्य परंपराओं में जीवित हैं। एक कथा के अनुसार, जब शिव और पार्वती ने नृत्य प्रतियोगिता की, तो पार्वती की हर ताल पर शिव को परास्त होना पड़ा। यह कथा शिवरात्रि पर भक्तों को यह संदेश देती है कि सौम्यता और शक्ति का संतुलन ही जीवन का आधार है।
नटराज की वैश्विक छवि
हवाई के कौअई स्थित कदवुल मंदिर और तमिलनाडु के चिदंबरम मंदिर में नटराज की 108 कारणों वाली मूर्तियां इस नृत्य की वैश्विक पहचान को दर्शाती हैं। चिदंबरम मंदिर को वह पवित्र स्थल माना जाता है, जहां शिव ने पार्वती के साथ आनंद तांडव किया था। स्कंद पुराण, भागवत पुराण और अन्य ग्रंथों में भी तांडव का उल्लेख मिलता है। गणेश और कृष्ण की तांडव मुद्राएं, साथ ही जैन मान्यताओं में इंद्र द्वारा ऋषभदेव के जन्म पर किया गया तांडव, इस नृत्य की व्यापकता को दर्शाते हैं।
रामेश्वरम: शिव और राम का संगम
महाशिवरात्रि के अवसर पर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक, रामेश्वरम की महिमा भी भक्तों के बीच चर्चा का विषय है। भगवान राम द्वारा स्थापित इस ज्योतिर्लिंग का नामकरण ‘रामस्य ईश्वर: स: रामेश्वर:’ अर्थात ‘राम के ईश्वर रामेश्वर हैं’ के रूप में किया गया। वहीं, शिव ने सती को इसका दूसरा अर्थ ‘रामा: ईश्वरो: य: रामेश्वर:’ यानी ‘जिनके ईश्वर राम हैं, वही रामेश्वर हैं’ बताया। यह व्याख्या सनातन धर्म में परस्पर सम्मान और एकता का प्रतीक है।
कीर्तिमुख: अहंकार के विनाश का प्रतीक
शिव पुराण की एक कथा में जालंधर नामक असुर की मूर्खता और उसकी सजा का वर्णन है। शिव द्वारा निर्मित प्रचंड शक्ति ने असुर को सबक सिखाया, और अंत में उसे स्वयं को खाने का आदेश दिया गया। इस शक्ति का मुख ‘कीर्तिमुख’ कहलाया, जो मंदिरों के द्वार पर अहंकार के विनाश के प्रतीक के रूप में स्थापित है। यह कथा भक्तों को आत्ममंथन और अहंकार त्यागने का संदेश देती है।
शिव तांडव स्तोत्र: ज्ञान और भक्ति का संगम
शिव तांडव स्तोत्र, जो पंच-चामर छंद में रचित है, भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है। इसके पहले श्लोक में शिव की जटाओं से निकलने वाली गंगा, सर्पों की माला और डमरु की ध्वनि का चित्रण है। विद्वानों द्वारा #SanskritAppreciationHour में इस स्तोत्र को सरलता से समझाने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे नई पीढ़ी भी इसकी गहराई को समझ सके।
महाशिवरात्रि का संदेश
महाशिवरात्रि केवल एक पर्व नहीं, बल्कि शिव की भक्ति, ज्ञान और सृजनशीलता को आत्मसात करने का अवसर है। यह पर्व हमें सिखाता है कि अहंकार का त्याग और ज्ञान की खोज ही सच्ची उन्नति का मार्ग है। सभी शिव भक्तों को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं। ॐ नमः शिवाय!