भगवान् शिव कैलाश पर रहते हैं लेकिन सावन के महीने में उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ता है। शिव पुराण के अनुसार, सावन मास में भगवान शिव अपने कैलाश पर्वत को छोड़कर धरती पर एक स्थान है, जहां वो निवास करने आते हैं। वो स्थान कहाँ है और भगवान् शिव वहाँ क्यों आते हैं, चलिए जानते हैं इस पौराणिक कथा से।
श्रावण मास या सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय माना जाता है। इस पूरे महीने में भक्तगण भोलेनाथ को जल अर्पित करते हैं, व्रत रखते हैं और हर सोमवार को विशेष पूजा करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सावन माह भक्तों के लिए इतना ख़ास क्यों होता है? वो इसलिए क्योंकि इस माह में शिवजी कैलाश पर नहीं बल्कि अपने भक्तों के बीच इस धरती पर निवास करते हैं। लेकिन उनका वो निवास स्थान कहाँ है और वो धरती पर क्यों आते हैं, चलिए जानते हैं।
सावन में भगवान शिव का निवास स्थान
वैसे तो भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत माना जाता है, जहाँ वे माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदी के साथ रहते हैं लेकिन मान्यता है कि सावन में वो कैलाश छोड़ देते हैं और कहीं और रहने चले जाते है। सावन के महीने में भगवान शिव अपने परिवार सहित कहाँ रहते हैं, इसका उत्तर हमें शिव पुराण से मिलता है। पुराणों के अनुसार, सावन महीने भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। इस दौरान भगवान शिव कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर उतरकर अपने ससुराल कनखल (हरिद्वार के पास) में निवास करते हैं।
कनखल, हरिद्वार के पास स्थित एक पवित्र तीर्थ स्थल है। यहीं पर राजा दक्ष ने यज्ञ किया था, जिसमें माता सती ने अपने पिता द्वारा शिव का अपमान सहन न कर आत्मदाह कर लिया था। फिर शिवजी ने वीरभद्र को भेजकर यज्ञ का विध्वंस किया और दक्ष का भी संहार कर दिया था। लेकिन बाद में दक्ष को क्षमा कर पुनर्जीवित किया गया। राजा दक्ष ने भगवान् शिव से वचन लिया कि वे हर सावन में कनखल आएंगे। इस घटना के बाद भगवान शिव ने वचन दिया था कि वे हर सावन मास में कनखल में अपने परिवार सहित निवास करेंगे। इस स्थान पर आज भी दक्षेश्वर महादेव मंदिर स्थित है, जो इस घटना का साक्ष्य है।
सावन का महीना भक्तों के लिए भगवान शिव की विशेष कृपा पाने का अवसर होता है। यह माना जाता है कि इस समय शिव अत्यंत सौम्य व प्रसन्न रहते हैं और उनके भक्तों की प्रार्थनाएं शीघ्र फल देती हैं। सावन में शिव भक्तों की भक्ति चरम पर होती है। मान्यता है कि धरती पर निवास करने के कारण इस समय भगवान शिव शिवलिंग के रूप में हर मंदिर और भक्त के हृदय में विराजमान होते हैं। वे भक्तों के बेहद करीब रहते हैं। वे कनखल से ही ब्रह्मांड का संचालन करते हैं। कुछ कथाओं में यह भी कहा गया है कि श्रावण मास में धरती पर आने से पहले भगवान शिव, माता पार्वती के साथ हरिद्वार, ऋषिकेश, काशी और उज्जैन जैसे तीर्थों की यात्रा भी करते हैं।