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Wednesday, June 18, 2025

‘शरबत जिहाद’ विवाद: रामदेव की सांप्रदायिक टिप्पणी पर हाई कोर्ट का हथौड़ा

नई दिल्ली, 23 अप्रैल 2025, बुधवार। योग गुरु और पतंजलि आयुर्वेद के संस्थापक बाबा रामदेव एक बार फिर विवादों के घेरे में हैं। इस बार उनके निशाने पर थी हमदर्द कंपनी और उसका लोकप्रिय पेय ‘रूह अफजा’, जिसके खिलाफ उनकी सांप्रदायिक टिप्पणी ने सामाजिक और कानूनी तूफान खड़ा कर दिया। दिल्ली हाई कोर्ट ने रामदेव के इस बयान को “अंतरआत्मा को झकझोरने वाला” और “माफी के लायक नहीं” करार देते हुए उन्हें कड़ी फटकार लगाई। आइए, इस मामले की तह तक जाते हैं और समझते हैं कि आखिर क्या है यह ‘शरबत जिहाद’ विवाद।

विवाद की जड़: ‘शरबत जिहाद’ का बयान

3 अप्रैल, 2025 को बाबा रामदेव ने पतंजलि के नए उत्पाद, गुलाब शरबत, के प्रचार के दौरान एक वीडियो जारी किया। इस वीडियो में उन्होंने बिना नाम लिए हमदर्द के रूह अफजा पर निशाना साधा। रामदेव ने दावा किया कि “एक कंपनी अपने शरबत की कमाई का उपयोग मस्जिदों और मदरसों के निर्माण में करती है,” जबकि पतंजलि का शरबत “गुरुकुल, विश्वविद्यालय और भारतीय शिक्षा बोर्ड” को बढ़ावा देता है। उन्होंने इस संदर्भ में “शरबत जिहाद” शब्द का इस्तेमाल किया, जो तुरंत सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।

इस बयान ने न केवल हमदर्द कंपनी की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की, बल्कि सांप्रदायिक तनाव को भड़काने का भी आरोप लगा। हमदर्द ने इसे मानहानिकारक और सामाजिक सौहार्द के लिए खतरा बताते हुए दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

दिल्ली हाई कोर्ट का सख्त रुख

22 अप्रैल, 2025 को जस्टिस अमित बंसल की अध्यक्षता में दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने रामदेव के बयान को “अनुचित” और “अक्षम्य” करार दिया। जज ने कहा, “यह बयान अदालत की अंतरआत्मा को झकझोरता है। इसे किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता।” कोर्ट ने रामदेव के वकील को चेतावनी दी कि यदि वे निर्देशों का पालन नहीं करते, तो सख्त आदेश जारी किए जाएंगे।

हमदर्द की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि यह मामला केवल रूह अफजा की बदनामी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने वाला है। उन्होंने इसे “नफरत फैलाने वाला भाषण” करार देते हुए कहा, “रामदेव जैसे प्रभावशाली व्यक्ति को अपने उत्पाद के प्रचार के लिए दूसरों को नीचा दिखाने का हक नहीं है।” रोहतगी ने यह भी बताया कि रामदेव ने पहले भी मुस्लिम समुदाय से जुड़े हिमालय ड्रग्स जैसे अन्य ब्रांड्स पर इसी तरह के हमले किए हैं।

कोर्ट ने रामदेव को पांच दिनों के भीतर विवादित वीडियो और सोशल मीडिया पोस्ट हटाने का आदेश दिया। साथ ही, उन्हें हलफनामा दाखिल कर यह सुनिश्चित करने को कहा कि भविष्य में हमदर्द या उसके उत्पादों के खिलाफ कोई आपत्तिजनक बयान नहीं दिया जाएगा। मामले की अगली सुनवाई 1 मई, 2025 को होगी।

रामदेव का बचाव और आलोचना

रामदेव ने शुरू में अपने बयान का बचाव करते हुए कहा कि उन्होंने किसी ब्रांड या समुदाय का नाम नहीं लिया। 19 अप्रैल को उन्होंने दावा किया, “रूह अफजा वालों ने खुद पर ‘शरबत जिहाद’ का आरोप ले लिया, इसका मतलब है कि वे यह जिहाद कर रहे हैं।” हालांकि, कोर्ट में उनके वकील ने आश्वासन दिया कि विवादित विज्ञापन हटा दिए जाएंगे।

इस बयान की राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी तीखी आलोचना हुई। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भोपाल में रामदेव के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग की, जिसमें उन्होंने इसे धार्मिक नफरत और सांप्रदायिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला बताया। सोशल मीडिया पर भी यूजर्स ने रामदेव के बयान को समाज में नफरत फैलाने वाला करार दिया।

हमदर्द और रूह अफजा: एक विरासत

हमदर्द, एक सदी पुरानी यूनानी दवा और खाद्य कंपनी, अपनी गुणवत्ता और सामाजिक कार्यों के लिए जानी जाती है। रूह अफजा, इसका प्रमुख उत्पाद, भारतीय उपमहाद्वीप में एक सांस्कृतिक प्रतीक है, जो हर धर्म और समुदाय के लोगों द्वारा पसंद किया जाता है। रामदेव का यह बयान न केवल हमदर्द की व्यावसायिक छवि को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि इसकी सामाजिक एकता की विरासत पर भी हमला करता है।

रामदेव का विवादों से पुराना नाता

यह पहली बार नहीं है जब रामदेव विवादों में घिरे हैं। 2020 में, उनकी कंपनी पतंजलि ने कोरोनिल को कोविड-19 की दवा के रूप में पेश किया, जिस पर आयुष मंत्रालय ने रोक लगा दी थी। 2021 में, उन्होंने एलोपैथी पर विवादास्पद टिप्पणियां कीं, जिसके लिए तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने माफी मांगने को कहा था। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने भी भ्रामक विज्ञापनों के लिए रामदेव और पतंजलि को फटकार लगाई थी।

सामाजिक सौहार्द की चुनौती

बाबा रामदेव का ‘शरबत जिहाद’ बयान न केवल एक व्यावसायिक विवाद है, बल्कि यह भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक एकता पर भी सवाल उठाता है। दिल्ली हाई कोर्ट का सख्त रुख इस बात का संदेश देता है कि प्रभावशाली व्यक्तियों को अपनी बात रखने में जवाबदेही बरतनी होगी। यह मामला हमें याद दिलाता है कि व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के नाम पर सांप्रदायिक सद्भाव को ठेस पहुंचाना न केवल अनैतिक है, बल्कि कानूनी रूप से भी गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है। 1 मई को होने वाली अगली सुनवाई में कोर्ट के फैसले पर सभी की नजरें टिकी हैं। तब तक यह सवाल बना रहेगा: क्या रामदेव इस बार सबक लेंगे, या विवादों का यह सिलसिला जारी रहेगा?

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