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Monday, August 4, 2025

मोरारी बापू के सूतक संबंधी बयान पर शंकराचार्य का सवाल: किस शास्त्र में है इसका उल्लेख?

वाराणसी, 16 जून 2025, सोमवार। प्रसिद्ध कथावाचक मोरारी बापू द्वारा सूतक न मानने संबंधी दिए गए बयान पर ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने निम्बार्क सम्प्रदाय के उस ग्रंथ का उल्लेख करने की मांग की है, जिसमें गृहस्थ व्यक्ति के लिए मृत्यु पर सूतक न मानने का प्रावधान हो। शंकराचार्य जी ने कहा कि निम्बार्क सम्प्रदाय एक वैदिक सम्प्रदाय है, फिर वह शास्त्र-विरुद्ध कृत्य की छूट कैसे दे सकता है? उन्होंने स्पष्ट किया कि हिन्दू धर्मशास्त्रों में राजा, ब्रह्मचारी और यति को छोड़कर अन्य सभी के लिए सूतक का पालन अनिवार्य है।

निम्बार्क सम्प्रदाय पर उठे सवाल

शंकराचार्य जी ने कहा कि मोरारी बापू ने अपने वक्तव्य में दावा किया है कि निम्बार्क सम्प्रदाय में मृत्यु पर सूतक नहीं मानना पड़ता। अब यह जिम्मेदारी निम्बार्क सम्प्रदाय के अनुयायियों की है कि वे इस दावे को शास्त्रों के आधार पर स्पष्ट करें। उन्होंने मोरारी बापू से आग्रह किया कि वे उस शास्त्रीय वचन को सामने लाएं, जो उनके इस कथन की पुष्टि करता हो।

सिन्दूर की मर्यादा पर सवाल

शंकराचार्य ने मोरारी बापू की मानस सिन्दूर कथा का जिक्र करते हुए कहा कि बापू की धर्मपत्नी ने आजीवन उनके लिए सिन्दूर धारण किया, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद दस दिन के सूतक का पालन न करने से सिन्दूर की मर्यादा का क्या अर्थ रह जाता है? उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यह सिन्दूर के प्रति सम्मान है?

प्रसिद्ध व्यक्तियों की जिम्मेदारी

शंकराचार्य ने जोर देकर कहा कि यह मामला केवल एक व्यक्ति का नहीं है। यदि कोई सामान्य व्यक्ति शास्त्र-विरुद्ध आचरण करता है, तो उसे नजरअंदाज किया जा सकता है, लेकिन जब कोई प्रसिद्ध व्यक्ति ऐसा करता है, तो लोग उसका अनुकरण करने लगते हैं। उन्होंने कहा कि शास्त्र-विरुद्ध आचरण कभी भी अनुकरणीय नहीं हो सकता।

राम के अनुयायी और शास्त्र-विरुद्ध आचरण

उन्होंने आगे कहा कि मोरारी बापू भगवान राम की कथा सुनाते हैं, जिनका जीवन धर्मशास्त्रों पर आधारित था। भगवान राम का एक भी कार्य वेद-विरुद्ध नहीं था। ऐसे में उनकी कथा करने वाले कैसे वेद-विरुद्ध आचरण कर सकते हैं? शंकराचार्य जी ने इस पर आश्चर्य जताया।

मंदिर प्रशासन पर भी निशाना

शंकराचार्य ने विश्वनाथ मंदिर के प्रशासन पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यदि मंदिर का प्रबंधन धार्मिक व्यक्तियों के हाथ में होता, तो ऐसा शास्त्र-विरुद्ध कृत्य वहां नहीं होता। मंदिर में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को भी इस कृत्य का दोष लग रहा है, क्योंकि इसके बाद मंदिर का शुद्धिकरण नहीं किया गया। उन्होंने जोर दिया कि धर्म का कार्य धार्मिक व्यक्तियों के अधीन होना चाहिए।

मोरारी बापू से कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं

शंकराचार्य ने स्पष्ट किया कि उनका मोरारी बापू से कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं है। उनका उद्देश्य केवल शास्त्रों की मर्यादा को बनाए रखना है। उन्होंने कहा कि जब भी शास्त्रों का लोप होता है, उसे सुधारने का दायित्व हमारा है। शास्त्रों की अवहेलना से न तो सिद्धि मिलती है और न ही सुख।

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