वाराणसी, 15 मई 2025, गुरुवार। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद का पैतृक गांव लमही, जो उनकी साहित्यिक विरासत का प्रतीक है, आज भू-माफियाओं के निशाने पर है। इस ऐतिहासिक गांव की जमीन पर अवैध कब्जे की आंधी चल रही है, जो न केवल प्रेमचंद की स्मृति को धूमिल कर रही है, बल्कि स्थानीय निवासियों के लिए भी चिंता का सबब बन गई है।
अपर जिलाधिकारी विपिन कुमार के कार्यालय से 10 मई को जारी एक पत्र ने इस गंभीर स्थिति को उजागर किया। पत्र के बाद प्रशासन हरकत में आया और क्षेत्रीय लेखपाल लमही के चक्कर लगाने में जुट गया। स्थानीय लोगों ने वाराणसी के जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार से भू-माफियाओं के काले कारनामों की पूरी कहानी सुनाई।
लमही में प्रेमचंद सरोवर के आसपास डेढ़ एकड़ से अधिक जमीन पर कब्जा हो चुका है। इतना ही नहीं, प्रेमचंद स्मारक के ठीक सामने वाले भूखंड पर भी अवैध निर्माण कर लिया गया। इस स्मारक के सामने जनसुविधा के लिए बनी पेयजल टंकी को तोड़ दिया गया और 200 साल पुराने ऐतिहासिक मंदिर को भी हटाने की कोशिश की गई। यह भूखंड, जिसकी रजिस्ट्री राज्यपाल के नाम पर है, अब भू-माफियाओं के कब्जे में है।
स्थानीय लोगों ने बताया कि आराजी संख्या 244 पर कब्जे के खिलाफ प्रशासन ने एफआईआर दर्ज की थी, लेकिन दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। भू-माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हैं कि एक व्यक्ति ने चक रोड पर ही कब्जा कर लिया, जिसके लिए उसे 92 लाख रुपये का जुर्माना भी ठोका गया। फिर भी, कब्जे का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा।
जिलाधिकारी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल जांच के आदेश दिए हैं और अधिकारियों को जल्द रिपोर्ट सौंपने को कहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रशासन की यह सक्रियता प्रेमचंद की विरासत को बचा पाएगी? लमही के लोग उम्मीद तो कर रहे हैं, पर भू-माफियाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के बिना यह उम्मीद अधूरी ही रहेगी।
प्रेमचंद, जिन्होंने अपनी लेखनी से समाज की सच्चाई को उजागर किया, आज उनके अपने गांव की जमीन छीनी जा रही है। यह केवल जमीन का सवाल नहीं, बल्कि एक महान साहित्यकार की स्मृति और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने की लड़ाई है। क्या लमही फिर से अपनी खोई हुई शांति और सम्मान पा सकेगा? यह वक्त और प्रशासन की इच्छाशक्ति ही बताएंगे।