लखनऊ, 4 जून 2025, बुधवार: उत्तर प्रदेश की सियासत और पुलिस महकमे में तब हलचल मच गई थी, जब सिपाही भर्ती पेपर लीक कांड ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया था, सड़कों पर युवाओं का गुस्सा उबाल मार रहा था और विपक्ष योगी सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था। ठीक उसी वक्त, एक नाम चुपके से सुर्खियों में आया—राजीव कृष्ण। कौन सोच सकता था कि यह अफसर, जिसने खामोशी से अपनी राह बनाई, 31 मई 2025 को यूपी के कार्यवाहक डीजीपी की कुर्सी संभालेगा? यह कहानी सिर्फ एक नियुक्ति की नहीं, बल्कि सियासत, विश्वास और रणनीति के ताने-बाने की है। आइए, जानते हैं कैसे हुआ यह कमाल और क्या है इस नियुक्ति के पीछे की असल कहानी!
कानून का नया शेर: राजीव कृष्ण का आगमन
जब राजीव कृष्ण ने डीजीपी का पदभार संभाला, तो उनके शब्दों में न झिझक थी, न कोई हिचक। उन्होंने सीधे-सीधे ऐलान किया, “अपराध और अपराधियों के खिलाफ हमारा रुख अडिग रहेगा। संगठित अपराध को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे। हर नागरिक को सुरक्षित माहौल देना हमारा मिशन है।” यह सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि योगी सरकार का सख्त संदेश था—अब यूपी में कानून का डंडा जोर से बजेगा। भीड़ हिंसा, सांप्रदायिक तनाव और गैंगवार की खबरों के बीच राजीव कृष्ण की यह हुंकार एक नई जंग की शुरुआत है।
11 सीनियर्स को पीछे छोड़कर कैसे बने ‘खास’?
राजीव कृष्ण कोई साधारण नाम नहीं। 1991 बैच के IPS अफसर, जिन्होंने फिरोजाबाद, इटावा, मथुरा, गौतम बुद्ध नगर, लखनऊ और बरेली जैसे जिलों में बतौर SSP अपनी छाप छोड़ी। STF और ATS जैसी खास इकाइयों में भी उनकी तूती बोली। लेकिन असली सनसनी तब मची, जब उन्होंने 11 सीनियर अफसरों को पछाड़कर डीजीपी की कुर्सी हथियाई। इनमें दलजीत सिंह चौधरी (BSF के DG), आदित्य मिश्रा, रेणुका मिश्रा, संदीप सालुंके, बीके मौर्य जैसे बड़े नाम शामिल हैं। यह नियुक्ति सीनियरिटी का खेल नहीं, बल्कि सीएम योगी के भरोसे का नतीजा है।
पेपर लीक कांड से ‘योगी के विश्वासपात्र’ तक
फरवरी 2024 का वो दौर, जब सिपाही भर्ती पेपर लीक ने यूपी सरकार की नींद उड़ा दी थी। विपक्ष ने योगी को कटघरे में खड़ा कर दिया। उस वक्त राजीव कृष्ण को पुलिस भर्ती बोर्ड की कमान सौंपी गई। नतीजा? उन्होंने रिकॉर्ड समय में 60,233 पदों की भर्ती को पारदर्शी और शांतिपूर्ण तरीके से पूरा कर दिखाया। यह वही पल था, जब राजीव कृष्ण सीएम योगी की ‘विश्वास सूची’ में टॉप पर चमके। उनकी यह उपलब्धि न सिर्फ प्रशासनिक कुशलता की मिसाल है, बल्कि सियासी तौर पर भी एक मास्टरस्ट्रोक साबित हुई।
सियासी तूफान और विपक्ष का वार
राजीव कृष्ण की नियुक्ति ने सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने X पर तंज कसा, “दिल्ली-लखनऊ की सियासत में यूपी की जनता पिस रही है।” उन्होंने कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्तियों पर सवाल उठाए। मायावती ने भी X पर लिखा, “यूपी में कानून का राज कमजोर है। डीजीपी के सामने अपराध नियंत्रण और समाज को सुरक्षा देना बड़ी चुनौती है।” दरअसल, 2022 से यूपी को स्थायी डीजीपी नहीं मिला। मुकुल गोयल, डीएस चौहान, आरके विश्वकर्मा और प्रशांत कुमार, सभी कार्यवाहक ही रहे। ऐसे में राजीव कृष्ण की नियुक्ति पर सवाल उठना लाजमी है।
भीड़ हिंसा पर सख्त रुख
जब अलीगढ़ में गोमांस के शक में भीड़ द्वारा की गई बर्बर पिटाई का मुद्दा उठा, तो राजीव कृष्ण ने दो टूक जवाब दिया, “कानून हाथ में लेने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।” यह साफ संदेश है कि वे भीड़ के डर से कानून तोड़ने वालों को छोड़ने के मूड में नहीं हैं। सियासी बयानों पर उन्होंने चुप्पी साधी, लेकिन इतना जरूर कहा, “कानून व्यवस्था को बिगाड़ने की कोई कोशिश बर्दाश्त नहीं होगी।”
प्रभावशाली परिवार, मजबूत नेटवर्क
राजीव कृष्ण की पृष्ठभूमि भी कम दिलचस्प नहीं। उनकी पत्नी मीनाक्षी सिंह IRS अफसर हैं। साले राजेश्वर सिंह, जो पहले ED में थे, अब सरोजिनी नगर से बीजेपी विधायक हैं। उनकी पत्नी लक्ष्मी सिंह नोएडा की पुलिस कमिश्नर हैं। यह नेटवर्क न सिर्फ प्रशासनिक, बल्कि सियासी तौर पर भी राजीव कृष्ण को और मजबूत बनाता है।
प्रशांत कुमार की विदाई: सम्मान या सवाल?
प्रशांत कुमार को सेवा विस्तार न मिलने से कई सवाल उठे। उन्होंने X पर लिखा, “वर्दी अस्थायी है, ड्यूटी हमेशा के लिए।” अखिलेश ने तंज कसा, “हर गलत को सही ठहराने का क्या फायदा?” नवंबर 2024 में योगी सरकार ने डीजीपी चयन के लिए नई गाइडलाइन बनाई थी, जिसमें छह सदस्यीय समिति का प्रावधान था। लेकिन इस समिति की प्रगति अब भी धुंधली है। पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन ने इसे “सरकार के अधीन और मनमानी” करार दिया।
चुनौतियां और उम्मीदें
राजीव कृष्ण को कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया है, लेकिन क्या वे स्थायी नियुक्ति पाएंगे? क्या वे यूपी में कानून व्यवस्था को दुरुस्त कर पाएंगे? उनके कंधों पर सिर्फ अपराध नियंत्रण की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि सीएम योगी के भरोसे को साबित करने का दबाव भी है। यह वर्दी अब उनसे जवाब मांग रही है। पूरा प्रदेश नजरें गड़ाए बैठा है कि क्या राजीव कृष्ण इस आग के तपते रास्ते पर खरे उतरेंगे? समय बताएगा, लेकिन एक बात तय है—यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई, बल्कि बस शुरू हुई है!