वाराणसी, 4 जुलाई 2025: उत्तर प्रदेश की सियासत में नया मोड़ आता दिख रहा है। योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री और निषाद पार्टी के प्रमुख डॉ. संजय निषाद ने वाराणसी में तीखे तेवर दिखाते हुए सत्तारूढ़ भाजपा को कठघरे में खड़ा किया है। साथ ही, समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव के बाबा बागेश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर दिए बयान का समर्थन कर सबको चौंका दिया। 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले निषाद की यह रणनीति दबाव की सियासत के रूप में देखी जा रही है।
अखिलेश के सुर में सुर: धर्म और कथावाचक पर बयान
संजय निषाद ने इटावा कथावाचक कांड पर अखिलेश यादव के बयान का खुलकर समर्थन किया। अखिलेश ने हाल ही में बाबा बागेश्वर धीरेंद्र शास्त्री की कथा की ऊंची फीस पर सवाल उठाए थे, जिसे निषाद ने सही ठहराया। उन्होंने कहा, “धर्म सबके लिए सुलभ होना चाहिए। कुछ कथावाचक इतने महंगे हैं कि आम लोग उन्हें अफोर्ड नहीं कर सकते। हिंदू धर्म में सभी को कथा कहने और धर्म प्रचार का अधिकार है, इसे कोई छीन नहीं सकता।”
भाजपा को चेतावनी: निषाद समाज को आरक्षण नहीं तो नुकसान
निषाद ने भाजपा पर निषाद समाज के साथ वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए तल्ख तेवर दिखाए। उन्होंने कहा, “भाजपा ने निषाद समाज को अनुसूचित जाति में शामिल करने का वादा किया था, लेकिन अब तक सिर्फ गुमराह किया गया। अगर यह वादा पूरा नहीं हुआ तो 2027 में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।” निषाद ने दावा किया कि केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, नोनिया, मांझी और गोंड जैसी जातियां यूपी की 18% आबादी का हिस्सा हैं और 60 विधानसभा सीटों पर नतीजे प्रभावित कर सकती हैं।
बेटे की हार का दर्द, BJP पर साजिश का आरोप
लोकसभा चुनाव में बेटे की हार का जिक्र करते हुए निषाद ने भाजपा के भीतर साजिश का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “पार्टी के अंदर ही कोई ऐसा शख्स है, जिसने मेरे बेटे को हरवाया और नेताओं को तोड़ा।” विनोद बिंद के भाजपा में शामिल होने पर भी नाराजगी जताते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी तक नहीं दी गई।
जेपीएनआईसी विवाद पर अखिलेश को जवाब
जेपीएनआईसी संचालन विवाद पर अखिलेश के बयान का जवाब देते हुए निषाद ने तंज कसा, “सपा सरकार में सरकारी विभाग बेचे जाते थे, अब योगी सरकार में सरप्लस रेवेन्यू के साथ खरीदे जाते हैं। जेपीएनआईसी जैसी परियोजनाएं अब एलडीए जैसे संस्थान संभाल रहे हैं।”
सियासी हलचल तेज
निषाद के इस बदले रुख ने यूपी की सियासत में हलचल मचा दी है। क्या यह 2027 के लिए नई गठबंधन की जमीन तैयार कर रहा है, या फिर निषाद समाज के हितों के लिए दबाव की रणनीति है? सियासी गलियारों में चर्चाएं तेज हैं, और सभी की नजरें अब निषाद पार्टी के अगले कदम पर टिकी हैं।