बन्नी की अनोखी यात्रा: वाढा हिंदू समुदाय की घर वापसी
नई दिल्ली, 22 मार्च 2025, शनिवार। पश्चिमी कच्छ के बन्नी इलाके में, जहाँ पाकिस्तान की सीमा पास में ही साँस लेती है, एक अनोखी कहानी ने जन्म लिया है। यह कहानी है वाढा हिंदू समुदाय की, जो दशकों तक अपनी जड़ों से कटकर, अपने धर्म और संस्कृति को भूल चुका था। यहाँ के मुस्लिम बहुल क्षेत्र में रहते हुए, गरीबी और अशिक्षा के बोझ तले दबे इस समुदाय ने हिंदू परंपराओं को छोड़कर इस्लामिक रीति-रिवाज अपना लिए थे। शादी के लिए मंत्रों की जगह निकाह की गूँज सुनाई देने लगी थी, और अंतिम संस्कार में अग्नि के बजाय मिट्टी का सहारा लिया जाने लगा था। नाम, पहनावा, और यहाँ तक कि पूजा की विधियाँ भी बदल गई थीं।
लेकिन बदलाव की एक हवा चली, और इसके पीछे थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की कोशिशें। संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इस प्रेरक बदलाव की कहानी साझा की। उनके अनुसार, संघ ने इस समुदाय को फिर से अपनी जड़ों से जोड़ने का बीड़ा उठाया। मंदिरों का निर्माण हुआ, शिक्षा की रोशनी फैली, और जीवन को बेहतर बनाने की पहल शुरू हुई। पिछले साल 8 दिसंबर को इस इलाके में पहली बार हिंदू रीति से सामूहिक विवाह का आयोजन हुआ, जो इस बदलाव का एक जीवंत प्रतीक बन गया।
संघ के सेवा विभाग ने इस मुहिम को गति दी। शिक्षा के माध्यम से जागरूकता लाई गई, हिंदू परंपराओं को फिर से अपनाने के लिए प्रोत्साहन दिया गया। चार गाँवों में 65 परिवारों को पक्के मकान दिए गए, ताकि उनकी जिंदगी में स्थिरता आए। स्वच्छता और आत्म-सम्मान की भावना को बढ़ावा देने के लिए भी कदम उठाए गए। यह सिर्फ परंपराओं की वापसी नहीं थी, बल्कि एक समुदाय के आत्मविश्वास और पहचान की पुनर्स्थापना थी।
यह कहानी बताती है कि सही दिशा और सहयोग से कोई भी समुदाय अपनी खोई हुई विरासत को फिर से हासिल कर सकता है। बन्नी का यह परिवर्तन न केवल एक सामाजिक बदलाव की मिसाल है, बल्कि यह भी दिखाता है कि संस्कृति और परंपराएँ कितनी गहरी जड़ें रखती हैं, जो समय और परिस्थितियों के थपेड़ों के बावजूद फिर से पनप सकती हैं।