आजमगढ़, 17 जून 2025। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से एक ऐसा मामला उभरकर सामने आया है, जो न केवल प्रशासनिक व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि सिंचाई विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और संगठित दबाव की गहरी साजिश को भी उजागर करता है। यह कहानी वेतन कटौती के एक साधारण आदेश से शुरू हुई, लेकिन अब यह पूरे सिस्टम को चुनौती देने की ओर बढ़ चली है।
मामला क्या है?
सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता अरुण सचदेवा उस वक्त सुर्खियों में आए, जब जिलाधिकारी (डीएम) आजमगढ़ ने 27 मई को विभागीय निरीक्षण के दौरान उनकी अनुपस्थिति पर सख्त रुख अपनाया। डीएम ने पहले ही निरीक्षण के लिए अरुण सचदेवा की उपस्थिति अनिवार्य करने का निर्देश दिया था, लेकिन वह बिना किसी पूर्व सूचना के गैरहाजिर रहे। नियमों के तहत डीएम ने उनके वेतन कटौती का आदेश जारी किया। यह कार्रवाई प्रशासनिक अनुशासन का हिस्सा थी, लेकिन यहीं से कहानी ने नाटकीय मोड़ ले लिया।
लेटर बम और जवाबी हमला
वेतन कटौती के बाद अरुण सचदेवा ने डीएम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्होंने एक आरोप-पत्र (XCN) दाखिल कर सनसनीखेज दावा किया कि उन्हें डीएम के कैंप कार्यालय में बुलाकर मारपीट और शोषण का शिकार बनाया गया। लेकिन जांच में उनके दावों की हवा निकल गई। न तो कार्यालय में कोई सीसीटीवी फुटेज इस घटना की पुष्टि करता है, न ही उनके शरीर पर चोट के कोई निशान मिले। सवाल उठता है कि क्या यह आरोप महज प्रशासनिक कार्रवाई से ध्यान भटकाने की कोशिश था?
इंजीनियर यूनियन का दबाव
मामले ने और तूल तब पकड़ा, जब इंजीनियर यूनियन ने डीएम के खिलाफ खुलकर लामबंदी शुरू कर दी। यहाँ सवाल सिर्फ एक अधिकारी की अनुपस्थिति या वेतन कटौती का नहीं है। असल मुद्दा यह है कि जब एक अधिकारी नियम तोड़ता है और उस पर कार्रवाई होती है, तो वह खुद को पीड़ित बताकर पूरे सिस्टम को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश क्यों करता है? क्या यह संगठित दबाव का हिस्सा है, जो प्रशासन को कमजोर करने की साजिश रच रहा है?
पड़ताल में चौंकाने वाले खुलासे
विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से पता चला है कि अरुण सचदेवा की कार्यशैली पहले से ही सवालों के घेरे में रही है। उनके द्वारा संचालित कई निर्माण कार्यों में गुणवत्ता की शिकायतें दर्ज हैं। इतना ही नहीं, वित्तीय लेन-देन में संदिग्ध गतिविधियों के भी प्रमाण सामने आए हैं। यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या वेतन कटौती का विरोध सिर्फ व्यक्तिगत कार्रवाई के खिलाफ है, या इसके पीछे पुरानी अनियमितताओं को छिपाने की कोशिश है?
इंजीनियर बिरादरी की पोल
यह कोई पहला मामला नहीं है, जब इंजीनियरिंग बिरादरी की कार्यशैली पर सवाल उठे हों। गुणवत्ता से समझौता, भ्रष्टाचार और संगठित दबाव के कई मामले पहले भी सामने आ चुके हैं। आजमगढ़ का यह प्रकरण एक बार फिर यही सवाल खड़ा करता है कि क्या इंजीनियर बिरादरी सुधार के लिए तैयार है, या वह अपने तंत्र को बचाने के लिए हर हथकंडा अपनाएगी?
सुशासन पर सवाल
यदि नियमों का पालन कराने वाले अधिकारियों को ही निशाना बनाया जाएगा, तो उत्तर प्रदेश में सुशासन और ईमानदारी की उम्मीद कैसे की जा सकती है? यह वक्त सरकार के लिए है कि वह इस मामले की गहराई से जांच करे और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। प्रशासनिक अधिकारियों की गरिमा और नियमों की रक्षा के लिए संगठित दबाव के खिलाफ ठोस कदम उठाने होंगे।
आखिरी सवाल
क्या आजमगढ़ का यह मामला सिर्फ एक अधिकारी और डीएम के बीच का विवाद है, या यह भ्रष्टाचार के उस गहरे तंत्र की बानगी है, जो सिस्टम को खोखला कर रहा है? जवाब सरकार और जनता को मिलकर तलाशना होगा, क्योंकि सुशासन की राह में यह एक बड़ा इम्तिहान है।