वाराणसी, 9 जुलाई 2025: AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के “भारत के मुसलमान बंधक हैं” वाले बयान ने धार्मिक और राजनीतिक गलियारों में हंगामा मचा दिया है। अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने इसे “देशद्रोही सोच” करार देते हुए ओवैसी पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, “अगर मुसलमान यहाँ संविधान के तहत बंधक महसूस करते हैं, तो सरिया शासन वाले देश चले जाएँ। हिंदुस्तान में हर साँस आज़ाद है, कोई बंधक नहीं!”
संतों का कड़ा पलटवार
स्वामी जितेंद्रानंद ने ओवैसी के बयान को देश की एकता के लिए ख़तरा बताया। उन्होंने सवाल उठाया, “जब इस्लामी देशों में मुश्किलें आती हैं, तो मुसलमान गैर-इस्लामिक देशों में शरण क्यों लेते हैं? फिर यहाँ बंधक होने की बात क्यों?” उन्होंने चेतावनी दी कि “पर्व-उत्सव के नाम पर गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं होगी। संविधान सबको बराबर अधिकार देता है, ये किसी की खैरात नहीं।”
क्या है विवाद की जड़?
विवाद की शुरुआत तब हुई जब ओवैसी ने केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजिजू के बयान पर पलटवार किया। रिजिजू ने कहा था कि भारत में अल्पसंख्यकों को संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं। जवाब में ओवैसी ने तंज कसते हुए कहा, “अल्पसंख्यकों के अधिकार खैरात नहीं, मौलिक हैं। हर दिन हमें ‘पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, जिहादी, रोहिंग्या’ कहकर अपमानित करना क्या सुविधा है?”
रिजिजू ने भी पलटवार करते हुए पूछा, “अगर भारत में अल्पसंख्यक इतने असहज हैं, तो पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक भारत में शरण क्यों माँगते हैं? वे पलायन क्यों नहीं करते?”
बयानबाजी से बढ़ता तनाव
इस बयानबाजी ने न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक माहौल को भी गरमा दिया है। सवाल उठ रहा है कि क्या ऐसी बयानबाज़ी देश की एकता और स्थिरता को प्रभावित करेगी? धार्मिक नेताओं और राजनेताओं के बीच बढ़ती तल्खी ने आम जनता में भी बहस छेड़ दी है।
जैसे-जैसे यह विवाद गहराता जा रहा है, सभी की निगाहें अब इस बात पर टिकी हैं कि क्या यह मुद्दा संसद से सड़क तक जाएगा या फिर शांतिपूर्ण संवाद से हल होगा।