मॉस्को, 18 जुलाई 2025: रूस की औद्योगिक इकाइयों में श्रमिकों की भारी कमी को पूरा करने के लिए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। रूस साल के अंत तक भारत से 10 लाख कामगारों को लाने की योजना बना रहा है। यह कदम रूस की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने और उद्योगों की रफ्तार बढ़ाने के लिए उठाया जा रहा है।
रूस का स्वेर्दलोव्स्क क्षेत्र, जो औद्योगिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र है, श्रमिकों की कमी से जूझ रहा है। इस क्षेत्र में हथियार और उपकरण बनाने के कारखानों से लेकर यूराल वैगन जावोद जैसी कंपनियां, जो टी-90 टैंक बनाती हैं, तक शामिल हैं। लेकिन यूक्रेन युद्ध के कारण यहां के ज्यादातर युवा सेना में भर्ती हो चुके हैं, जिससे कारखानों में काम करने वालों की कमी हो गई है। रूस की बड़ी कंपनियां अब भारतीय कामगारों को अपने कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स, मेटल फैक्ट्रियों और मशीन मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स में नियुक्त करना चाहती हैं।
हालांकि, भारतीय कामगारों के लिए रूस में काम करना आसान नहीं होगा। सर्दियों में यहां का तापमान -15 से -20 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। इसके अलावा, भाषा, संस्कृति और खानपान की भिन्नता भी चुनौतियां पेश कर सकती है। फिर भी, रूस ने भारतीय श्रमिकों को हरसंभव सुविधा देने का वादा किया है।
रूस भारत के साथ-साथ श्रीलंका और उत्तर कोरिया से भी श्रमिकों को बुलाने की योजना बना रहा है। बीते साल 2024 में कैलिनिनग्राद के फिश प्रॉसेसिंग कॉम्प्लेक्स ‘Za Rodinu’ में श्रमिकों की कमी होने पर भी भारत से कामगार बुलाए गए थे। रूसी श्रम मंत्रालय का अनुमान है कि 2030 तक देश में 31 लाख श्रमिकों की कमी हो सकती है। इसे देखते हुए मंत्रालय ने 2025 तक विदेशी श्रमिकों का कोटा 1.5 गुना बढ़ाकर 2.3 लाख करने का प्रस्ताव दिया है।
रूसी आर्थिक विकास मंत्रालय ने उन देशों की सूची का विस्तार करने की मांग की है, जहां से श्रमिक बुलाए जा सकते हैं। मंत्रालय के मुताबिक, 2024 में गैर-सीआईएस देशों से 47,000 योग्य प्रवासी श्रमिकों को काम पर रखा गया था। यह कदम रूस के औद्योगिक विकास को गति देने और श्रमिकों की कमी को पूरा करने की दिशा में अहम साबित हो सकता है।
भारत के लिए यह अवसर न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि दोनों देशों के बीच संबंधों को और मजबूत करने का जरिया भी बन सकता है।