नई दिल्ली, 8 अप्रैल 2025, मंगलवार। वक्फ बोर्ड अधिनियम के पारित होने के बाद से देश में एक नया तूफान खड़ा हो गया है। कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम नेता और संगठन लगातार मुस्लिम समुदाय को भड़काने की कोशिश में जुटे हैं। अब इस आग में घी डालने का काम कुछ तथाकथित मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने भी शुरू कर दिया है। इन लोगों ने हाल ही में मुस्लिम सांसदों को एक पत्र लिखा, जो न सिर्फ भड़काऊ है, बल्कि देश की संसदीय व्यवस्था और संविधान को चुनौती देने वाला भी है। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने इस पर कड़ा एतराज जताते हुए इसे हिंसा और देश-विरोधी मानसिकता का हिस्सा करार दिया।
पत्र का मकसद: भड़काना और बाँटना
विहिप के अखिल भारतीय प्रचार प्रसार प्रमुख विजय शंकर तिवारी ने इस पत्र को आड़े हाथों लिया। उनका कहना है कि यह पत्र झूठ और दुष्प्रचार का हथियार बनकर मुस्लिम समाज को हिंसा के लिए उकसा रहा है। पत्र में अल्पसंख्यक अधिकारों की बात तो की गई, लेकिन सिर्फ मुसलमानों का जिक्र है। इसमें “मुस्लिम समाज का गला घोंटने” जैसे भावनात्मक जुमले और “गरिमापूर्ण अस्तित्व के लिए संघर्ष” की बातें हैं। इतना ही नहीं, मुसलमानों की “सामूहिक आवाज़” को बुलंद करने के लिए संसद के अंदर-बाहर प्रदर्शन और बहिष्कार तक की अपील की गई है, ताकि “देश-विदेश का मीडिया” इसे भुनाए। तिवारी ने इसे “मुस्लिम इंडिया” बनाने का खतरनाक सपना बताया, जो कभी कट्टरपंथी नेता सैयद शहाबुद्दीन भी देख चुके थे।
हस्ताक्षरकर्ताओं का सच: संविधान से बड़ा मजहब?
इस पत्र का सबसे चौंकाने वाला पहलू इसके हस्ताक्षरकर्ता हैं। इसमें न सिर्फ कट्टरपंथी नेता और जिहादी संगठन शामिल हैं, बल्कि संविधान की शपथ लेने वाले विधायक, सांसद, आईएएस, आईपीएस अधिकारी, सैन्य अफसर, अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन, विश्वविद्यालयों के कुलपति, वक्फ बोर्ड के अधिकारी, वरिष्ठ वकील और पत्रकार भी हैं। विहिप का कहना है कि इनके लिए देश से बड़ा मजहब है। तिवारी ने तंज कसते हुए कहा, “इन्हें पता है कि कट्टरपंथी सड़कों पर उतरते हैं तो हिंसा, उपद्रव और आगजनी ही होती है, फिर भी ये उकसा रहे हैं।”
‘मुस्लिम इंडिया’ का सपना और उसकी हकीकत
विहिप ने चेतावनी दी कि मजहब के आधार पर देश के एक और बँटवारे का यह सपना कभी पूरा नहीं होगा। लेकिन अगर इस भड़कावे से देश में उपद्रव हुआ, तो जिम्मेदारी इन हस्ताक्षरकर्ताओं की होगी। उन्होंने कहा, “ये लोग देश के सामने अपराधी बनकर खड़े होंगे।” विहिप ने यह भी जोड़ा कि नए वक्फ कानून से ज्यादातर अल्पसंख्यक खुश हैं, क्योंकि वे वक्फ बोर्ड और उसके अवैध कब्जों के आतंक से परेशान थे। यह कानून सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ नहीं, बल्कि पारदर्शिता और न्याय के लिए है।
संविधान पर हमला: एक खतरनाक खेल
भारत एक संप्रभु, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसका दिल संविधान में बसता है। इस पत्र को विहिप ने संविधान का अपमान बताया। उनका कहना है कि मजहबी कानून को संविधान से ऊपर रखने की सोच देश की एकता, अखंडता और सामाजिक समरसता के लिए खतरा है। तिवारी ने केंद्र सरकार और न्यायपालिका से इस मामले को गंभीरता से लेने की माँग की, यह याद दिलाते हुए कि ऐसी मानसिकता ने ही कभी भारत का बँटवारा कराया था।
संविधान सर्वोपरि: विहिप का संदेश
विश्व हिंदू परिषद ने साफ शब्दों में कहा, “संविधान सर्वोपरि है। किसी भी मजहबी या जातिगत संगठन को इसकी मर्यादा लाँघने की इजाजत नहीं दी जा सकती।” यह चिंतन शिविर और पत्र प्रकरण एक बार फिर देश के सामने सवाल खड़ा करता है—क्या हम संविधान के रास्ते पर चलेंगे या मजहबी उन्माद की आग में झुलसेंगे? जवाब अब सरकार और समाज को मिलकर देना है।